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सर्वदर्शनसंग्रहे
यदि आप पूछें कि 'एक की सत्ता अनेक में है' यह विश्वास किस पर अवलम्बित है, तो इसका उत्तर होगा - हे मित्र, आप चिरायु हों, सन्तोष करें कि अन्य पदार्थ के अपोह ( तद् - भिन्न-भिन्न ) पर ही अवलम्बित है ( 'यह घट है' यह वाक्य आप कैसे मानते हैं, जबकि घटत्व सामान्य को नहीं मानते ? यही शंका है । अपोहवाद को स्वीकार करके ही यह विश्वास होता है - यह घट घटेतर से भिन्न है । घट से भिन्न जिन पदार्थों का बोध होता है, यह घट उन सबों से भिन्न है । उत्तर यही है ) । अब इसे अधिक बढ़ाना व्यर्थ है ।
विशेष - - आठवें श्लोक में जाति या सामान्य के विरुद्ध आपत्तियां उठाई गयी हैं । सामान्य एक जगह से दूसरी जगह जाता नहीं है, क्योंकि क्रिया केवल द्रव्य में ही रहती है, सामान्य में नहीं । ऐसा होने पर घटोत्पत्ति के समय उसमें घटत्व नहीं रहेगा - यह दोष सम्भव है । यदि यह कहें कि मृत्पिण्ड में ही घटत्व था और उत्पन्न होते ही घट में आ गया, तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि घटोत्पत्ति के पूर्व मृत्पिण्ड में घटत्व था ही नहीं; घटोत्पत्ति के बाद ही घट में घटत्व सामान्य रहता है । यह भी अयुक्त है । यदि फिर भी यह कहें कि दूसरे घट में विद्यमान घटत्व बढ़कर दूसरे से सम्बद्ध हो जाता है, तो उत्तर होगा कि बाद में घटत्व टुकड़े होकर भी नहीं रहता । अवयव सहित पदार्थ की ही वृद्धि होती है, घटत्व में तो अवयव नहीं – तो यह बढ़ेगा कैसे ? यदि वृद्धि नहीं हो और फिर भी सम्बन्धको स्वीकार करें तो सामान्य की सत्ता पहले नहीं रह सकती । लेकिन ऐसी बात है नहीं, प्रत्युत वह तो पूर्व आधार को छोड़ता ही नहीं । यह जाति को स्वीकार करने वालों की दोष-परम्परा है ।
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( १६. दुःख और स्वलक्षण की भावनाएँ )
सर्वस्य संसारस्य दुःखात्मकत्वं सर्वतीर्थङ्करसम्मतम् । अन्यथा तन्निविवृत्सूनां तेषां तन्निवृत्त्युपाये प्रवृत्त्यनुपपत्तेः । तस्मात्सर्वं दुःखं दुःखमिति भावनीयम् ।
ननु किंवदिति पृष्टे दृष्टान्तः कथनीय इति चेत् -- मैवम् । स्वलक्षणानां क्षणानां क्षणिकतया सालक्षण्या भावादेतेन सदृशमपरमिति वक्तुमशक्यत्वात् । ततः स्वलक्षणं स्वलक्षणमिति भावनीयम् ।
समूचे संसार को दुःखात्मक समझना सभी शास्त्रकारों ( आस्तिक, नास्तिक दोनों ) से सम्मत है । [ यदि संसार दुःखमय ] न हो तो उस (दुःख ) से बचने की इच्छा करनेवाले व्यक्तियों की प्रवृत्ति दुःखों से निवृत्त होने के उपायों के प्रति कैसे होगी ? यही कारण है कि [ बौद्ध लोग ] यह भावना ( विचार ) रखते हैं - 'सब कुछ दुःख है, दुःख है ।'
यदि कोई पूछे कि 'किसकी तरह ( यह होता है ) ? कोई उदाहरण तो कहिये ।' [ तब हम उत्तर देंगे कि ] ऐसी बात नहीं, सभी पदार्थों का अपना-अपना लक्षण है ( All