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________________ शांकर-दर्शनम् ७५९ ( २६ क. चतुस्सूत्री के अन्य सूत्र-स्वरूप और तटस्थ लक्षण ) . 'जन्माद्यस्य यतः' (ब्र० सू० १११।२) इति द्वितीयसूत्रे ब्रह्म स्वरूपलक्षणतटस्थलक्षणाभ्यां न्यरूपि। तत्र स्वरूपान्तर्गतत्वे सति व्यावर्तकं स्वरूपलक्षणं 'सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म' ( ते० २।१।१) इत्यादिवेदान्तः प्रतिपादितम् । तस्य सत्यज्ञानाद्यात्मकस्वरूपान्तर्गतत्वे सति व्यावर्तकत्वात् । तटस्थलक्षणं 'यतो वा इमानि'। (त० २।१) इत्यादीनि वाक्यानि निरूपयन्ति जगज्जन्मादिकारणत्वेन । तदुक्तं विवरणे६१. जगज्जन्मस्थितिध्वंसा यतः सिध्यन्ति कारणात् । तत्स्वरूपतटस्थाभ्यां लक्षणाभ्यां प्रदर्श्यते ॥ इति । 'जिससे इस ( संसार ) के जन्मादि होते हैं' (ब्र० सू० १।१।२ ) इस दूसरे सूत्र में स्वरूप-लक्षण और तटस्थ-लक्षण के द्वारा ब्रह्म का निरूपण किया गया है । __ स्वरूप के अन्तर्गत रहकर जो [ लक्षण किसी वस्तु को दूसरी वस्तुओं से ] अलग करता है वह स्वरूपलक्षण ( Actual Definition ) है जिसका प्रतिपादन निम्नलिखित उपनिषद्-वाक्यों में हुआ है- 'ब्रह्म सत्य, ज्ञान और अनन्त है' ( ते० २।१।१ ) । यह लक्षण ब्रह्म को सत्य, ज्ञान आदि के रूप में स्वरूप के अन्दर ही रखता है तथा दूसरों से पृथक् करता है । तटस्थ-लक्षण ( External Definition ) का निरूपण ‘यतो वा इमानि' ( जिससे ये सारे पदार्थ उत्पन्न हुए ) आदि वाक्य करते हैं कि यह ब्रह्म संसार का कारण है । इसे विवरण में [ द्वितीय सूत्र के आरम्भ में ही ] कहा गया है-'जिस कारणस्वरूप ब्रह्म से जगत् का जन्म, स्थिति और ध्वंस, ये सिद्ध होते हैं उसका प्रदर्शन स्वरूप-लक्षण और तटस्थ-लक्षण के द्वारा किया जाता है।' विशेष-स्वरूपलक्षण से वस्तु के स्वरूप का पता लगता है जब कि तटस्थलक्षण लक्ष्य वस्तु से बाहर रहता है। दोनों लक्षण व्यावृत्ति करते हैं, पदार्थ के व्यवहार के प्रवर्तक होते हैं । चन्द्रमा में प्रकाश होना स्वरूपलक्षण है, उसे उससे पृथक् नहीं कर सकते । राम का तिलक का लगाना, मुकुट पहनना आदि तटस्थलक्षण है क्योंकि यद्यपि यह दृश्य कभी-कभी ही होता है, किन्तु इसके द्वारा राम को दूसरे व्यक्तियों से पृथक् तो किया जा सकता है ? नाटक में जो नट भीम की भूमिका ( Role ) में उतरता है तो भीम बनना उसका तटस्थलक्षण है, क्योंकि यद्यपि इसके द्वारा उसे दूसरे पात्रों से पृथक किया जाता है परनु यह उसका स्वरूप तो है नहीं। नट के रूप में उसे पहचानना स्वरूपलक्षण है । ब्रह्म में इन लक्षणों के निरूपण में यह ध्यान रखना है कि किस प्रकार के ब्रह्म का लक्षण कर रहे हैं । शुद्ध ब्रह्म स्वरूपलक्षण है-सत्य, ज्ञान और आनन्द । जगत् के जन्मादि का कारण होना शुद्ध ब्रह्म का तटस्थलक्षण है क्योंकि ब्रह्म माया से विशिष्ट होने पर ही यह काम करता है। मायाविशिष्ट ब्रह्म के लिए यह तटस्थलक्षण नहीं, स्वरूपलक्षण हो जाता है।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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