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________________ शांकर-दर्शनम् ( १ ) विवादास्पद रजतज्ञान सामने में विद्यमान विषय से युक्त है । ( प्रतिज्ञा ) ( २ ) क्योंकि रजतार्थी उसकी ओर नियम से प्रवृत्त होते हैं । ( हेतु ) ( ३ ) जिसका साधन उस तरह है, उसका साध्य भी वैसा ही होगा जैसे दोनों वादियों के द्वारा स्वीकृत सच्चे रजत का ज्ञान । ( व्याप्ति + उदाहरण ) [ इस अनुमान से यह सिद्ध हुआ कि रजतविषयक ज्ञान पुरोवन पदार्थविषयक है । अतः रजत और पुरोवर्ती पदार्थ में तादात्म्य की सिद्धि हो जाती है । अब दूसरे अनुमान से यह सिद्ध कर रहे हैं कि सीपी का टुकड़ा चाँदी के ज्ञान का विषय है अतएव सीपी और चांदी में तादात्म्य है । इन दोनों तादात्म्यों की उपपत्ति आरोप से ही होती है । यह दूसरा अनुमान लें - ] ( १ ) विवादास्पद सीपी का टुकड़ा चाँदी के ज्ञान का विषय है । ( प्रतिज्ञा ) ( २ ) क्योंकि रजतार्थी की प्रवृत्ति बिना व्यवधान के उसी ओर होती है, क्योंकि 'रजत शब्द के समानाधिकरण दूसरे पद ( ' इदम् ' ) का वह ( सीपी का टुकड़ा ) वाच्य है | ( हेतु ) ( ३ ) जैसे वास्तविक चांदी होती है । ( उदाहरण ) ( १४ क. मीमांसकों के तर्कों का उत्तर ) ७११ यदुक्तं रजतज्ञानस्य शुक्तिकालम्बनत्वेऽनुभवविरोध इति तदप्ययुक्तम् । विकल्पासहत्वात् । तथा हि-तत्र किं रजताकारप्रतीति प्रति शुक्तेरालम्बनत्वेऽनुभव विरोध उद्भाव्यते इदमंशस्य वा ? I नाद्यः । अनङ्गीकारपराहतत्वात् । न द्वितीयः । इदन्तानियतदेशाधिकरणस्य चाकचिक्यविशिष्टस्य वस्तुतो रजतज्ञानालम्बनत्वमनवलम्बमानस्य भवत एवानुभवविरोधात् । इदं रजतमिति सामानाधिकरण्येन पुरोवर्तिन्यङ्गुलिनिर्देशपूर्वकमुपादानादिव्यवहारदर्शनाच्च । आप कहते हैं कि रजत का ज्ञान यदि सीपी पर आधारित हो जाय तो अनुभव का विरोध होगा । किन्तु यह बात युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि किसी भी निम्नोक्त विकल्प को सहने की शक्ति इसमें नहीं है । विकल्प ये हैं : -- आप अनुभव का विरोध कहाँ पर मानते हैं ? क्या रजत के आकार की प्रतीति सीपी पर आधारित होती है तब, या 'इदम्' अंश पर आधारित होती है तब ? [ सभी लोगों का यह अनुभव है कि चाँदी की प्रतीति पुरोवर्ती पदार्थ पर निर्भर करती है। फिर भी अनुभव - विरोध माननेवाले कहते हैं कि पुरोवर्ती पदार्थ सीपी के रूप में चांदी की प्रतीति का आधार है, इसी से अनुभव का विरोध होता है । अथवा 'इदम् ' अंश के रूप में वह आधार होगा । अब दोनों का खण्डन करते हैं । ] ( १ ) पुरोवर्ती पदार्थ सीपी के रूप में रजतज्ञान का आधार नहीं हो सकता क्योंकि इसे हम स्वीकार नहीं करते । अतः यह खण्डित हो गया [ कि इसमें अनुभव का विरोध होगा । हम इस रूप में रजत का आरोप मानते नहीं, जिससे अनुभवविरोध की उक्त
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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