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सर्वदर्शनसंग्रहे
एवम गृहीतविवेक मापन्न सन्निहितरूप्यज्ञानसारूप्यं ग्रहणस्मरणद्वयमयथाव्यवहारहेतुरिति सिद्धम् ।
इसे गुरुमत का अनुसरण करनेवालों ने कहा है- 'ये दोनों ग्रहण और स्मरण भेद के साथ प्रतीत नहीं होते । सच्चे रजत का जैसा बोध होता है यद्यपि उससे ये वास्तव में भिन्न हैं ॥ २६ ॥ तथापि भिन्न- जैसे लगते नहीं हैं क्योंकि दोनों प्रकार के बोधों में भेद का ग्रहण न होने की समता है। सच्चे रजत का बोध तो सामने में विद्यमान एक ही वस्तु के विषय में होता है || २७ ॥ लोग इस ग्रहण और स्मरण को उससे भिन्न रूप में न समझकर केवल समान रूप में ही समझते हैं । [ ग्रहण स्मरणात्मक ज्ञान भी सम्यक् रजत के ज्ञान की तरह ही समझा जाता है । यद्यपि यह लोगों का मानसिक दोष है कि दोनों में अन्तर नहीं कर पाते । ] ॥ २८ ॥ प्रत्यक्ष ( अपरोक्ष ) में प्रतीति होने के कारण तथा एक समान ही वस्तु का ग्रहण करने के कारण दोनों अभेद - संवित्ति ( Knowledge of identity ) का समर्थन होता है । उसके समान व्यवहार भी होता है तथा उससे लोगों की प्रवृत्ति भी सिद्ध ( Justified ) होती है ।। २९-३० ॥ ( प्रकरणपञ्चिका ४१३३ –३७ ) ।
इस प्रकार इस अयथाव्यवहार ( असामान्य या विशिष्ट व्यवहार ) का कारण ग्रहण और स्मरण, इन दोनों को मानते हैं जिनमें परस्पर भेद का ग्रहण नहीं होता तथा जिन्हें समक्ष में विद्यमान रूप्य ( चौदी ) के ज्ञान की समरूपता मिल चुकी है -- यह सिद्ध हो गया ।
( ११ ङ. 'पीतः शङ्खः' के व्यवहार का समर्थन )
यद्येवमयथाव्यवहारो ग्रहणस्मरणजन्यस्तहि 'पीतः शह्नः' इत्यादौ स न सिद्धः, तत्र तयोरभावादिति चेत्-न । अगृहीतविवेकयोः प्राप्तसमीचीनसंसर्गज्ञानसारूप्यत्वे ग्रहणयोरेव व्यवहारसंपादकत्वोपपत्तेः । नयनरश्मिवर्तिनः पित्तद्रव्यस्य पीतिमा दोषवशाद् द्रव्यरहितो गृह्यते । शङ्खोऽप्यकलित शुक्लगुणः स्वरूपतो गृह्यते । तदनयोर्गुणगुणिनोः संसर्गयोग्ययोरसंसर्गाग्रहसारूप्यात्पी ततपनीयपिण्डप्रत्यया वैलक्षण्याद् व्यवहार उपपद्यते ।
[ पुनः एक शंका हो रही है- ] यदि हम यह मान भी लें कि यह असामान्य व्यवहार ग्रहण तथा स्मरण से उत्पन्न होता है तथापि 'शंख पीला है' इस [ असामान्य प्रयोग ] में तो वह सिद्ध नहीं होता ? कारण यह है कि इस प्रयोग में दोनों का अभाव देखते हैं । [ ग्रहण की सत्ता होने पर भी स्मरण की सत्ता नहीं रहती । विषय नहीं हो सकता क्योंकि उसके संस्कार को जगानेवाली कोई चीज नहीं है । इसलिए मोमांसकों के अनुसार 'पीला शंख' का प्रयोग असम्भव हो जायगा । [ हम वेदान्ती इसे मिथ्याज्ञान कहकर आसानी से चला सकते हैं | ]
पीतत्व का अंश स्मरण का