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पातञ्जल-पर्शनम् होने के साधर्म्य के कारण 'प्रवीण' के अर्थ में प्रवृत्त होता है । [ कुश लाने में बड़े विवेक की आवश्यकता है-उसे देखना पड़ता है कोन कुश है, कौन सामान्य घास । निपुण व्यक्ति भी विवेकी होता है। दोनों में विवेक का धर्म समान है इसलिए कुशल का अर्थ निपुण हो गया। ] इस अर्थ की प्रवृत्ति, बिना “िगै प्रयोजन की अपेक्षा रखे ही, होती है । अनादि काल से वृद्ध-व्यवहार को परम्परा म प रहने के कारण [ यह अर्थ ] अभिधान ( वाच्यार्थ प्रकट करनेवाली शक्ति या अभिधा ) के समान [ रूढ़ हो जाता है।] इसे ही [ कुमारिल ने तन्त्रवार्तिक में ] कहा है-'रूढ़िमूलक लक्षणायें प्रायः ( काश्चित् ) प्रसिद्धि के कारण अभिधान ( वाच्यार्थ ) को तरह ही हो जाती हैं।'
तस्माढिलक्षणायाः प्रयोजनापेक्षा नास्ति। यद्यपि प्रयुक्तः शब्दः प्रथमं मुख्यार्थ प्रतिपादयति, तेनार्थेनार्थान्तरं लक्ष्यत इत्यर्थधर्मोऽयं लक्षगा, तथापि तत्प्रतिपादके शब्दे समारोपितः सञ्शब्दव्यापारः इति व्यपदिश्यते। एतदेवाभिप्रेत्योक्तं-लक्षणारोपिता क्रियेति ।
इसलिए रूढिलक्षणा को प्रयोजन की अपेक्षा नहीं रहती । यद्यपि यह ठीक है कि प्रयुक्त होनेवाला शब्द पहले मुख्य अर्थ का प्रतिपादन करता है और उसी मुख्यार्थ से यह दूसरा अर्थ लक्षित होता है इसलिए अर्थ का यह धर्म ही लक्षणा है [ शब्द का नहीं ]; फिर भी चूंकि मुख्यार्थ के प्रतिपादक शब्द पर ही इसका आरोप होता है अतः यह शब्द का ही व्यापार है-ऐसा [ आलंकारिक विधि से ] कहते हैं । इसी अभिप्राय से कहा गया है'लक्षणा' शब्द का वह व्यापार है जो आरोपित किया जाता है। [ रूढिमलक लक्षणा को विवेचना करने के बाद अब प्रयोजनमूलक लक्षणा के भेदों तथा उनमें प्रत्येक के उदाहरण का उल्लेख करते हैं । ]
(२० क. प्रयोजनमूलक लक्षणा ) प्रयोजनलक्षणा तु षड्विधा-उपादानलक्षणा लक्षणलक्षणा गौणसारोपा गौणसाध्यवसाना शुद्धसारोपा शुद्धसाध्यवसाना चेति । कुन्ताः प्रविसन्ति, मञ्चाः क्रोशन्ति, गौर्वाहीकः, गौरयम्, आयुर्घतम्, आयुरेवेदम्--इति यथाक्रममुदाहरणानि द्रष्टव्यानि ।
प्रयोजनमूलक लक्षणा के छह भेद हैं जिनके उदाहरण भी क्रमशः देख लिये जायं
(१) उपादानलक्षणा ( Inclusive Indication )-'कुन्ताः प्रविशन्ति' अर्थात् भाला धारण किये हुए पुरुष आते हैं। [ यहाँ पर मुख्य अर्थ को वाक्य के साथ अन्वित करने के लिए ही दूसरे अर्थ का ग्रहण किया जाता है। अपने अर्थ का बिना परित्याग किये हुए ही दूसरे अर्थ का ग्रहण करना उपादान कहलाता है । कुन्न का मुग्यार्थ है भाला ( Lance ), अब भालों में प्रवेश करने की शक्ति नहीं है इसलिए वाक्य में अन्वय