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________________ बौद्ध दर्शनम् उदाहरणों में धूम देखकर अग्नि की सत्ता जानकर दोनों के व्याप्ति-सम्बन्ध को अन्वय-विधि से जानते हैं । ( २ ) व्यतिरेक विधि - जहाँ-जहाँ अग्नि नहीं है ( जैसे झील, मैदान, नदी, बगीचा, आदि में ) वहाँ-वहाँ धूम नहीं है । अतः, एक के अभाव वाले उदाहरणों में दूसरे का भी अभाव देखकर दोनों का कार्य-कारण सम्बन्ध जान लेना व्यतिरेक-विधि है । पाश्चात्य तर्क - शास्त्र ( आगमन) में कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करने के पांच नियम हैं - ( १ ) Method of Agreement, ( साहचर्य की विधि ) ( २ ) Method of Difference, ( भेद-विधि ) ( ३ ) Joint Method of Agreement and Difference ( साहचर्य और भेद की संयुक्त विधि ) ( ४ ) Method of Concomitant Variation ( सहचारी विकारविधि ) ( ५ ) Method of Residue ( अवशेष विधि ) - इनकी जानकारी के लिए किसी तर्कशास्त्र ( आगमन ) की पुस्तक को देखा जाय । २५ साध्य बौद्ध लोग उपर्युक्त दोनों विधियों को इसलिए नहीं मानते कि इनसे समीपवर्ती वर्तमान काल में देखे गये उदाहरणों का पता भले लग सके किन्तु कालान्तर और देशान्तर में विद्यमान पदार्थों की व्याप्ति तो नहीं हो सकती । कभी न कभी धूम और अग्नि में व्यभिचार ( पार्थक्य ) हो ही जायगा -- ऐसी संभावना है ( सहचार साधन का नियत सम्बन्ध, व्यभिचार = दोनों का अलग हो जाना ) । इस प्रकार डेविड - ह्यूम के संशयवाद ( Scepticism ) में प्रवेश किया जा सकता है । इससे बोद्ध लोगों ने तादात्म्य और तदुत्पत्ति को ही व्याप्ति का साधन माना है। इससे भी निस्तार नहीं है । जो आक्षेप बौद्ध लोग नैयायिकों पर लगाते हैं वहीं आक्षेप बौद्धों पर भी लग सकता है । तदुत्पत्ति और तादात्म्य के द्वारा व्याप्ति जानने में भी साध्य - साधन के सम्बन्ध विच्छेद की सम्भावना है । किन्तु बौद्ध लोग इस संशयवादी भ्रम को आड़े हाथों लेते हैं । तर्क और व्याघात का आश्रय लेकर शंकाओं को दूर किया जा सकता । तर्क का अभिप्राय है विरोधी वाक्य को असिद्ध या सिद्ध करना जैसे – 'सभी धूमवान् पदार्थ अग्नियुक्त हैं' यदि वाक्य ठीक नहीं तो इसका विरोधी ( Contradictory ) वाक्य 'कुछ धूमवान पदार्थ अग्नियुक्त हैं' अवश्य सत्य है । इसका अर्थ है कि अग्नि के बिना भी धूम हो सकता है ( विनापि कारणं कार्यमुत्पद्यताम् ) । लेकिन सामान्य कार्य-कारण- सिद्धान्त ( Universal Gausation ) से उपर्युक्त तथ्य खण्डित हो जायगा । अर्थ यह होगा कि बिना कारण के भी कार्य होने लग जायगा ( स्मरणीय है कि धूम का एक मात्र कारण अग्नि ही है ) । यदि कोई हठपूर्वक यह कहना शुरू कर दे कि कारण के बिना कार्य होता है तो यह व्यावहारिक असंगति ( व्याघात Practical absurdity ) हो जायगी । यदि कार्य कारण के बिना होता ही है तो रसोई बनाने के लिए आग की क्या आवश्यकता ? इस प्रकार व्याघात होने तक
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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