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पूर्वपीठिका
[ सर्वदर्शनसंग्रह का महत्त्व-दर्शन की उत्पत्ति-भारतीय दर्शन और पाश्चात्य दर्शन-तत्त्वसाक्षात्कार के साधन-प्रमाण-संख्या पर विचार-दार्शनिकों के भेद-ौत और ताकिक-प्रमेय-ईश्वर पर दर्शनों की मान्यता-जीव का निरूपण-संसार की व्याख्याय-विभिन्न दर्शनों में तत्वविचार-नास्तिक-दर्शन-रामानुज और मध्व–अनुमान के अवयव-अद्वैतवेदान्त-मोक्ष का विचार-माधवाचार्य का ममयउपसंहार।]
माधवाचार्य का सर्वदर्शनसंग्रह बहुत दिनों से विद्वानों की दृष्टि में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखता आया है। यद्यपि इसके अनेकानेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं किन्तु अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी में कोई उत्तम अनुवाद तथा व्याख्या न देखकर प्रस्तुत संस्करण का प्रयास किया गया है। भारतीय और पाश्चात्य विद्वानों के द्वारा लिखे गये आधुनिक ग्रन्थ यद्यपि दर्शन के अध्ययन के लिए प्रचुर सामग्री प्रस्तुत करते हैं, किन्तु प्राचीन भारतीय परम्परा का निर्वाह करते हुए माधवाचार्य के द्वारा लिखे गये इस ग्रन्थ का अवमूल्यन किसी भी मूल्य पर नहीं किया जा सकता । जैसी पाण्डित्यपूर्ण शैली में माधवाचार्य ने अपने काल में प्रसिद्ध दर्शनों का संकलन करने का प्रयास किया और उनकी सर्वाङ्गपूर्ण विवेचना करने में कुछ उठा नहीं रखा, उस तरह का संग्रह अन्यत्र मिलना दुष्कर है । दर्शनों की विवेचना में उद्धरणों की षुष्कलता लेखक के अद्वितीय पाण्डित्य की विजय-पताका पंक्ति-पंक्ति में प्रसारित कर रही है। चाहे गम्भीर विवेचन हो, पूर्वपक्ष और सिद्धान्त में भीषण संग्राम छिड़ा हुआ हो अथवा किसी दर्शन के पदार्थों की गणना ही करनी हो, माधवाचार्य की शैली एकरूपता का अद्वितीय दृष्टान्त उपस्थित करती है। ___ यह प्रायः देखने में आता है कि किसी विशिष्ट सम्प्रदाय का लेखक दूसरे सम्प्रदायों की विवेचना करते समय अपने विचारों का आरोपण करने लगता है या कम से कम उस विवेच्य सम्प्रदाय की आलोचना भी करता जाता है । किसी भी लेखक से निष्पक्ष या वस्तुनिष्ठ (Objective) होने की आशा करना सरासर भूल है परन्तु माधवाचार्य मानो इस नियम के सबसे बड़े अपवाद हैं । किसी भी सम्प्रदाय की विवेचना में, चाहे वह चार्वाक ही क्यों न हो, आचार्य की निष्पक्षता मलाघनीय है। प्रत्येक दर्शन के सिद्धान्तों और पदार्थों की व्याख्या