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इस कृति में मेरे समक्ष रूपान्तरकार का अपना कोई निजी विचार या
कि उसके विषय में भी मैं
मौलिक स्थापना किसी के पक्ष-विपक्ष में नहीं है अपनी सम्मति प्रस्तुत करूँ । अतः रूपान्तरण के उसका मूल्यांकन किया जा सकता है, उतना किया गया है । निश्चय ही इस महान् और सामयिक प्रयास के लिए श्री उमाशंकर शर्मा 'ऋषि' मेरे साधुवाद के पात्र हैं ।
-महेश्वरानन्द सरस्वती
धर्मसंघ, काशी, ज्ये० शु० ४, २०२१ (१३-६-१९६४) ।
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विषय में जितने पक्षों से संक्षेप में ऊपर उपस्थापित