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सर्वदर्शनसंग्रहे
अर्थवमुच्येत - ' असम्बद्धमपि तत्तदेव जनयति यत्र यच्छक्तम् । शक्तिश्च कार्यदर्शनोन्नेयेति ।' तन्न सङ्गच्छते । तिलेषु तैलजननशक्तिरित्यत्र तैलस्थासत्त्वे सम्बद्धत्वासम्बद्धत्वविकल्पेन तच्छक्तिरिति निरूपणायोगात् । कार्यकारणयोरभेदाच्च कारणात्पृथक्कार्यस्य सत्त्वं न भवति ।
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यदि ऐसा उत्तर दिया जाय कि असम्बद्ध होने पर भी कोई ( कारण ) उसी कार्य को उत्पन्न करता है जो कारण जिसे उत्पन्न करने में समर्थ ( शक्त Capable ) है [ जैसे तन्तु पट को उत्पन्न करने में समर्थ है - मिट्टी घट को । ] किसी पदार्थ की शक्ति का अनुमान उसके कार्य को देखकर करना चाहिए। [ मिट्टी की शक्ति का अनुमान घट देखकर होता है कि वह घटोत्पादन के लिए समर्थ है । ]
पर यह निश्चित
]
लेकिन यह युक्ति ठीक नहीं हो सकती । 'तिलों में तेल उत्पन्न करने की शक्ति है ' इस प्रकार [ असत्कार्यवाद के अनुसार तिलों में ] तेल की सत्ता न मानने नहीं कर सकते कि [ तेल और उत्पन्न करने की शक्ति के परस्पर सम्बद्ध होने या असम्बद्ध होने से भी उसमें वह शक्ति है ही । [ अभिप्राय यह है – सांख्य दार्शनिक नेयायिकों से कहते हैं कि आपकी बात मान ली, कार्य देखकर हम किसी पदार्थ की शक्ति का अनुमान कर लेंगे, तिल में तेल उत्पन्न करने की शक्ति है । परन्तु यह बतलाइये कि पहले से विद्यमान शक्ति जो तिल में है वह कार्योत्पत्ति के पूर्व तेल से सम्बद्ध है या नहीं ? यदि है तो तेल की सत्ता उत्पत्ति के पूर्व भी है, सत्कार्यवाद की ही सिद्धि होगी । यदि सम्बन्ध नहीं है तो कैसे निरूपण करेंगे कि यह तेल को उत्पन्न करनेवाली शक्ति है ? दोनों दशाओं में गये । ] दूसरे, कार्य और कारण में भेद नहीं होता, इसलिए कारण से अलग कार्य की सत्ता नहीं होती । ( कार्य-कारण के अभेद होने के कारण सत्ता एक ही रहती है, दो सत्ताएं नहीं रहतीं । अत: कार्योत्पत्ति के पूर्व यदि कारण की सत्ता है तो कार्य की सत्ता भी अवश्य ही रहेगी । )
पटस्तन्तुभ्यो न भिद्यते । तद्धर्मत्वात् । न यदेवं, न तदेवं यथा गोरश्वः । तद्धर्मश्च पटः । तस्मान्नार्थान्तरम् । तर्हि प्रत्येकं त एव प्रावरणकार्यं कुर्युरिति चेन्न । संस्थानभेदेनाविर्भूतपटभाव प्रावरणार्थक्रियाकारित्वोपपत्तेः । यथा हि कूर्मस्याङ्गानि कूर्मशरीरे निविशमानानि तिरोभवन्ति, निःसरन्ति चाविर्भवन्ति; एवं कारणस्य तन्त्वादेः पटादयो विशेषा निःसरन्त आविर्भवन्त उत्पद्यन्त इत्युच्यन्ते । निविशमानास्तिरोभवन्तो विनश्यन्तीत्युच्यन्ते ।
[ कार्य का कारण से अभेद सिद्ध करने के लिए ये प्रमाण हैं - ] पट तन्तुओं से भिन्न नहीं है क्योंकि वह तन्तुओं की अवस्था - विशेष ( धर्म ) है । जो ऐसा ( किसी वस्तु से अभिन्न ) नहीं है, वह उसका धर्म भी नहीं है जैसे गौ से अश्व । [ गौ से अश्व अभिन्न