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पाणिनि-दर्शनम् (९. सत्ता ही शब्दों का अर्थ है-पूर्वपक्ष और सिद्धान्तपन ) यदि सत्त्व सर्वेषां शब्दानामर्थस्तहि सर्वेषां शब्दानां पर्यायता स्यात् । तथा च क्वचिदपि युगपत्रिचतुरपदप्रयोगायोग इति महच्चातुर्यमायुष्मतः। तदुक्तम्
११. पर्यायाणां प्रयोगो हि योगपद्येन नेष्यते।
पर्यायेणैव ते यस्माद्वदन्त्यर्थ न संहताः॥ इति । तस्मादयं पक्षो न क्षोदक्षम इति चेत् ।
[ पूर्वपक्षी कहते हैं कि ] यदि सभी शब्दों का अर्थ सत्ता ( परम सत्ता, परमार्थ का ज्ञान ) ही है तब तो सभी शब्द एक दूसरे के पर्याय हो जायंगे। यही नहीं, आपकी चतुरता धन्य है ! आपके मत में रहने से तो कहीं भी एक साथ तीन-चार पदों का प्रयोग होगा ही नहीं। [ जब सभी शब्द एक दूसरे के पर्याय हैं तब तो एक साथ कई पर्यायों का प्रयोग नहीं होगा, अतः कई शब्दों को एक बार में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। मनुष्य की भाषा ही निरर्थक हो जायगी । धन्य है आपका सिद्धान्त ! ] इसे कहा भी है___ 'पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग एक साथ नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये शब्द एकएक करके अर्थ का बोध कराते हैं, एक साथ मिलकर नहीं।' [चन्द्र, इन्दु, शशि आदि शब्द पृथक् वाक्यों में अपने क्रम से अर्थ-बोध करा सकते हैं किन्तु यदि एक ही साथ इनका प्रयोग कर दें तो वाक्य नहीं बन सकता-साहित्य-शास्त्र में तो ऐसा करना पुनरुक्ति दोष माना जायगा। ] इसलिए यह पक्ष इतना भी बलयुक्त नहीं कि हमारे खण्डन को संभाल सके।
तदेतद्गगनरोमन्थकल्पम् । नीललोहितपीताद्युपरञ्जकद्रव्यभेदेन स्फटिकमणेरिव सम्बन्धिभेदात्सत्तायास्तदात्मना भेदेन प्रतिपत्तिसिद्धौ, गोसत्ताविरूपगोत्वाविभेदनिबन्धनव्यवहारवलक्षण्योपपत्तेः। तथा चाप्तवाक्यम्
१२. स्फटिकं विमलं द्रव्यं यथा युक्तं पृथक्पृथक् ।
___नीललोहितपीताद्यस्तवर्णमुपलभ्यते ॥ इति । [ उक्त प्रश्न का उत्तर है कि ] यह तो आकाश ( शून्य ) का रोमन्थ ( जुगाली, पागुर ) करने के समान है। [ पशु चबाये हुए पदार्थ को फिर से मुंह में लाकर चबाते हैं वही रोमन्थ है । रोमन्य करने के लिए कुछ ठोस पदार्थ होना चाहिए। यों ही आकाश का रोमन्थ नहीं हो सकता । उसी तरह आप लोगों का यह आक्षेप भी बिल्कुल असम्भव है।] जैसे स्वच्छ स्फटिक मणि में उपरंजक ( रंगनेवाले ) द्रव्यों के भेद के कारण नोले, लाल, पीले तथा अन्य रंगों की प्रतीति होती है उसी तरह सम्बन्धी के भेद के कारण, सत्ता की प्रतीति, उससे सम्बद्ध वस्तु के स्वरूप-भेद के रूप में होती है। इस तरह 'गो' की सत्ता ( वैयक्तिक सत्ता ) के रूप में गोत्व आदि [ जाति की जो सत्ता है उसी से विभिन्न वस्तुओं