SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५८ सर्वदर्शनसंग्रह तत्र अपिना उक्तम् ( वहाँ 'अपि' शब्द के द्वारा कहा गया है )-दोनों जगहों पर कहे जाने के कारण पुनरुक्ति है । गुरुजी इनकी इस प्रतिभा पर इतने प्रसन्न हुए कि उन्हें ही गुरु कहने लगे। __ मीमांसा-दर्शन का संक्षिप्त इतिहास देना यहाँ असंगत नहीं होगा । वेदों के कर्मकाण्ड-पक्ष पर विचार करने के उद्देश्य से मीमांसा-सूत्र की रचना जैमिनि ने की ( ३००वि० पू० )। सभी दर्शन-सूत्रों की अपेक्षा यह ग्रन्थ बड़ा है। प्रायः २६५० सूत्र हैं जो बारह अध्यायों में विभक्त हैं। इस पर उपवर्ष और बौधायन ने वृत्तियां लिखी थीं किन्तु वे उद्धरणों में ही उपलब्ध हैं। शबरस्वामी ( १०० ई० पू० ने ) मीमांसासूत्र पर अपना विस्तृत भाष्य लिखा जो शबरभाष्य के नाम से प्रसिद्ध है। सूत्रों को समझने के लिए यह एकमात्र प्रामाणिक ग्रन्थ है । शबरभाष्य पर विभिन्न टीकाएं हुई, जिनसे मीमांसा के तीन सम्प्रदाय हो गये-भाट्ट, गुरु और मुरारि ।। ___ भाट्ट-मत के प्रवर्तक कुमारिल ( ७५० ई० ) शंकराचार्य के समकालिक थे। उन्होंने शबरभाष्य पर तीन वृत्तिग्रन्थ लिखे-(१) प्रथम अध्याय के प्रथम (तर्क) पाद पर विशाल श्लोकवार्तिक, जो कारिकाओं में उक्त पाद की व्याख्या है। (२) प्रथम अध्याय के दूसरे पाद से लेकर तीसरे अध्याय तक गद्य में तन्त्रवातिक तथा ( ३ ) अवशिष्ट अध्यायों की संक्षिप्त टिप्पणी टुपुटीका के नाम से की। दोनों वार्तिकों में बौद्धों का पूर्ण समीक्षण किया गया है। कुमारिल के प्रधान शिष्य मण्डन मिश्र थे जो शंकराचार्य से परास्त होकर सुरेश्वराचार्य बन गये थे (८०० ई० ) । इन्होंने तन्त्रवार्तिक की व्याख्या, विधिविवेक, भावनाविवेक विभ्रमविवेक (पांच ख्यातियों की व्याख्या) तथा मीमांसा-सूत्रानुक्रमणी लिखी। वाचस्पति मिश्र ने ( ८५० ई० ) विधिविवेक पर 'न्यायकर्णिका' व्याख्या की। कुमारिल के दूसरे शिष्य उम्बेक ( जो भवभूति ही समझे जाते हैं ) ने भावनाविवेक की टोका तथा श्लोकवार्तिक की प्रथम टीका 'तात्पर्यटीका' नाम से की । अपूर्ण होने के कारण इसकी पूर्ति जयमिश्र ने की थी। पार्थसारथि मिश्र ( ११०० ई० ) ने भाट्टमत की पुष्टि के लिए तर्करत्न (टुप्टीका की व्याख्या ), न्याय-रत्नाकर (श्लोकवार्तिक की टीका ), न्यायरत्नमाला ( मीमांसा के सात विषयों पर स्वतन्त्र निबन्ध ) तथा शास्त्रदीपिका-ये चार ग्रन्थ लिखे । प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक माधवाचार्य ने श्लोकों में जैमिनीयन्यायमाला तथा उसकी टीका "विस्तर' के नाम से लिखी। खण्डदेव मिश्र ( १६५० ई० ) ने भाट्टकौस्तुभ, भाट्टदीपिका और भाट्टरहस्य लिखकर नव्य मीमांसा का प्रवर्तन किया। मोमांसान्यायप्रकाश के रचयिता आपदेव इसो समय हुए थे । इनके अतिरिक्त लौगाक्षिभास्कर ( १६४० ई० का अर्थसंग्रह तथा कृष्णयज्वा की मीमांसापरिभाषा-ये भी प्रचलित ग्रन्थ हैं । गुरुमत का प्रवर्तन प्रभाकर ने ( ७७५ ई० ) शबरभाष्य पर बृहती-टीका लिखकर किया। आचार्य शालिकनाथ ने इस पर ऋजुविमला टीका लिखी। भवदेव ( नाथ ) ने
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy