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________________ ४१२ सर्वदर्शनसंग्रह (१४) संशयसम जाति में वादी का विरोध इस आधार पर किया जाता है कि दृष्टान्त तथा सामान्य ( Genus ) दोनों के समान रूप से इन्द्रियग्राह्य (ऐन्द्रियक ) होने के कारण, उनके नित्य और अनित्य दोनों प्रकार की वस्तुओं का साधर्म्य देखकर संशय होता है । वादी की उक्ति है कि कृतक होने से घट की तरह शब्द अनित्य है। अब प्रतिवादी संशय करता है--शब्द नित्य या अनित्य है क्योंकि यह इन्द्रियग्राह्य है, जैसे घट या घटत्व । प्रतिवादी कहता है कि कृतक होने से कारण ( शब्द और घट में कृतकत्व का साधर्म्य देखकर ) शब्द अनित्य है जब कि इन्द्रियग्राह्य होने के कारण घटत्व की तरह शब्द नित्य है, यह संदेह होता है । वादी का विरोध तो हुआ। (१५) प्रकरणसम.वह जाति है जिसमें दोनों पक्षों (नित्य और अनित्य ) के साधर्म्य ( या वैधर्म्य ) से वादी का विरोध करते हैं। वादी उपर्युक्त रीति से शब्द को अनित्य सिद्ध करता है जब कि प्रतिवादी कहता है कि शब्द नित्य है क्योंकि यह श्रवणीय है जैसे शब्दत्व । प्रतिवादी कहता है कि शब्द की अनित्यता सिद्ध नहीं हो सकती क्योंकि हेतु ( श्रवणीयता) शब्द तथा शब्दत्व दोनों में ( जो क्रमशः अनित्य और नित्य हैं) साधर्म्य रखता है तथा यह वही शास्त्रार्थ आरम्भ करता है जिसके साधन के लिए इसका प्रयोग हआ था। 'श्रवणीयता'-हेतु शब्द को अनित्य सिद्ध करने के लिए प्रयुक्त हुआ और उलटे यह नित्यानित्य का विवाद खड़ा कर देता है। (१६) हेतुसम ( या अहेतुसम ) जाति में हेतु को तीनों कालों में असिद्ध करके वादी का विरोध करते हैं । वादी की उक्तिशब्द अनित्य है क्योंकि यह कृतक है जैसे घट अब प्रतिवादी कहता है कि हेतु साध्य के पहले हुआ कि पीछे कि साथ-साथ ? यदि हेतु ( कृतकत्व ) साध्य ( अनित्य ) के पहले हुआ तब तो हेतु का नाम ही पड़ना कठिन है । साधन ( हेतु ) के समय यदि साध्य ही नहीं रहा तो साधन होगा किसका ? यदि हेतु साध्य के बाद आता है तब तो हेतु की आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि साध्य तो पहले से है (= सिद्ध है )। यदि हेतु और साध्य एक ही साथ आवें तब तो गाय की बायीं-दायीं सोंग के समान सम्बद्ध रहने से साध्य-साधन का सम्बन्ध नहीं रह सकेगा । यह जाति वास्तव में कारक और ज्ञापक हेतुओं को एक समझने के कारण उत्पन्न होती है। (१७ ) अर्थापत्तिसम वह जाति है जिसमें विरोधीदल अर्थापत्ति ( अन्यथा असिद्धि) का आभास के द्वारा वादी का खण्डन करता है। वादी को उपर्युक्त उक्ति का विरोध प्रतिवादी यों करता है-शब्द को यदि अनित्य मानते हैं तो अर्थ से ही ज्ञात होता है कि शब्द के अतिरिक्त सभी चीजें नित्य हैं। घट का दृष्टान्त भी तो नित्य ही है फिर आप इसे अनित्य की सिद्धि के लिए क्यों रखते हैं ? तब अर्थापत्ति से, शब्द नित्य है क्योंकि यह आकाश की तरह अमूर्त है-यह सिद्ध हुआ। (१८) अविशेषसम जाति वहाँ होती है जब वादी का विरोध इस आधार पर करते हैं कि यदि पक्ष और दृष्टान्त में समता ( अविशेष Absence of difference )
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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