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________________ ४०६ सर्वदर्शनसंग्रहे(४) असिद्ध या साध्यसम-( Unproved middle )-साध्य की सिद्धि के लिए सिद्ध हेतु की आवश्यकता पड़ती है। यदि वह अपने आप सिद्ध न हो तो साध्य को क्या सिद्ध करेगा, स्वयमेव साध्य बन जायगा। इसीलिए इसे साध्यसम ( साध्य के समान ही सिद्धि की अपेक्षा रखनेवाला ) कहते हैं। जब गलती से किसी अनुमान-वाक्य ( Premise ) में कोई हेतु मान लिया जाता है तब असिद्ध होता है। उदाहरण के लिए 'आकाश-कमल में सुगन्ध है क्योंकि यह कमल है, अन्य कमल जिस प्रकार के हैं ।' यहाँ हेतु ( आकाश-कमल ) की व्यावहारिक सता ( Locus standi ) नहीं, क्योंकि आकाश में कमल होता नहीं। इसके तीन भेद होते हैं। ___(क) आश्रयासिद्ध ( Non-existent subject )-'आकाश-कमल सुगन्धित है क्योंकि इसमें कमलत्व है जैसे कि सरोवर के कमलों में होता है' यहाँ आश्रय ( subject ) ही असिद्ध है जिससे हेतु ( कमलत्व ) व्यर्थ ( Futile ) हो जाता है, क्योंकि पक्ष और हेतु में कोई सम्बन्ध नहीं है। (ख ) स्वरूपासिद्ध ( Non-existent reason )-जब हेतु पक्ष ( Minor term ) में सिद्ध न हो, न रहे, तब स्वरूपासिद्ध हेतु होता है । जैसे—'शब्द गुण है क्योंकि यह चाक्षुष है जैसा कि रूप होता है ।' यहाँ का हेतु ( चाक्षुषत्व ) शब्द में नहीं मिलता, . क्योंकि शब्द श्रवणेन्द्रिय से गृहीत (श्रावण ) होता है । इस तरह का हेतु पक्षधर्मता के ज्ञान का विरोधी होता है। (ग ) व्याप्यत्वासिद्ध ( Non-existent concomitance )-जिस हेतु में कुछ उपाधि ( Conditon शर्त ) लगी हुई होती है, वही व्याप्यत्वासिद्ध है । नाम के अनुसार इस प्रकार के हेतु में हेतु और साध्य के बीच होनेवाली व्याप्ति असिद्ध रहती है। उपाधि साध्य को तो व्याप्त करती है किन्तु हेतु को वह व्याप्त नहीं कर पाती । उदाहरण के लिएपर्वत धूमवान् है क्योंकि वह अग्नि से युक्त है । यहाँ 'अग्नियुक्त होना' हेतु है जो सोपाधिक है । यहाँ उपाधि है—आर्द्र इन्धन का संयोग । दूसरे शब्दों में, अग्नियुक्त पदार्थ तभी धूमवान् हो सकते हैं जब उनमें भींगा जलावन ( Fual ) रहे। 'आर्टेन्धनसंयोग' ( उपाधि ) यहाँ साध्य को व्याप्त करता है किन्तु हेतु ( अग्नि ) को व्याप्त नहीं कर पाता । उपाधि के विषय में चार्वाक दर्शन में हम विस्तृत विवेचना कर चुके हैं । (५) कालातीत या बाधित ( False reason )-जहाँ साध्य के अभाव की सिद्धि किसी दूसरे प्रमाण से ( अनुमान को छोड़कर किसी प्रमाण से ) हो वहाँ बाधित हेतु होता है। जैसे---अग्नि अनुष्ण ( शीतल ) है क्योंकि यह द्रव्य है । यहाँ 'शीतलता' साध्य है उसका अभाव उष्णता है जिसका निर्णय स्पर्शन-प्रत्यक्ष से होता है। द्रव्यों ( हेतु ) में केवल एक द्रव्य ही है ( तेजस् ) जो उष्ण होता है । आठ द्रव्यों को शीतल पाकर कोई नवम द्रव्य-अग्नि-को भी शीतल सिद्ध करना चाहता है। परन्तु अनुभव
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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