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________________ अक्षपाव-दर्शनम् ४०५ (२) विरुद्ध ( Contradictory middle )-जिस हेतु का सम्बन्ध साध्य से बिल्कुल ही न रहे, उलटे जो साध्याभाव के द्वारा व्याप्त हो -वही विरुद्ध हेतु है । ऐसे हेतु से साध्य की सिद्धि तो होती नहीं उसके अभाव की सिद्धि हो जाती है अर्थात् ठीक उलटा निष्कर्ष निकलता है । 'शब्द नित्य है क्योंकि यह उत्पन्न होता है'-इस उदाहरण में 'उत्पन्न होना' ( हेतु ) साध्य (नित्य ) का ठीक विरुद्ध है, उसके शब्द की अनित्यता ही सिद्ध हो जायगी । कारण यह है कि उत्पत्ति और अनित्यता ( साध्याभाव ) में व्याप्ति-सम्बन्ध है । इसी प्रकार ये उदाहरण भी होंगे-वायु भारी है क्योंकि यह खाली है, यह घोड़ा है क्योंकि इसे सीगें हैं, इत्यादि । सव्यभिचार साध्य की सिद्धि में असफल रहता है जब कि विरुद्ध उसे असिद्ध कर देता है या इसके अभाव को सिद्ध करता है। (३) प्रकरणसम या सत्प्रतिपक्ष ( Opposable reason )-जिस हेतु से किसी पक्ष पर किसी साध्य का साधन हो सके और दूसरे हेतु से उसी पक्ष पर ठीक साध्य के अभाव की भी सिद्धि हो जाये तो वह हेतु प्रकरणसम है । दूसरे शब्दों में उस हेतु का प्रतिपक्षी या विरोध करनेवाला हेतु भी रहता है जो उलटी बात भी सिद्ध कर सकता है। (प्रतिपक्ष = प्रतिहेतु Counter reason, सत् = है।) प्रकरण का अर्थ है प्रक्रिया अथवा विचार । विचार या प्रकरण की जब आवश्यकता पड़ती है तब वादी या प्रतिवादी, जो भी रहें, अपने मतलब की सिद्धि के लिए कोई हेतु रखते हैं । यदि हेतु निर्णायक ( शुद्ध ) हुआ तो प्रकरण समाप्त हो जाता है । यदि हेतु सत्प्रतिपक्ष हुआ, हेतु का प्रतिद्वन्द्वी हेतु साध्य से उलटी बात की सिद्धि के लिए तैयार रहा, तब निर्णय तो होगा ही नहीं- प्रकरण चलता रहेगा। इस प्रकार प्रकरण के समान ही एक और प्रकरण से आनेवाले हेतु को प्रकरणसम हेतु कहते हैं । उदाहरण के लिए शब्द नित्य है क्योंकि इसमें नित्यधर्म को प्राप्ति होती है । तो ठीक इसी तरह शब्द अनित्य है क्योंकि इसमें अनित्यधर्म मिलते हैं। 'नित्यधर्म का मिलना' सत्प्रतिपक्ष हेतु है, क्योंकि साध्याभाव की सिद्धि करनेवाला प्रतिपक्षी हेतु भी तैयार है-'अनित्यधर्म का मिलना' । अन्य उदाहरण है-- शब्द नित्य है क्योंकि यह श्रवणीय है, तथा, शब्द अनित्य है क्योंकि यह कृतक ( Artificial ) है । पहली दशा में दृष्टान्त के रूप में 'शब्दत्व' दिया जा सकता है जब कि दूसरी दशा में घट, पट आदि दिये जा सकते हैं । व्याप्ति भी दोनों में पृथक् होगी । अतः 'श्रवणीय होना' यह प्रथम हेतु प्रकरणसम या सत्प्रतिपक्ष है, क्योंकि एक दूसरे हेतु से साध्याभाव की सिद्धि होती है । विरुद्ध हेतु से साध्याभाव की सिद्धि स्वयं ही करता है, जब कि सत्प्रतिपक्ष हेतु साध्याभाव की सिद्धि एक दूसरे हेतु से करता है।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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