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________________ ३७२ सर्वदर्शनसंग्रह खड़े होनेवाले विभाग को तथा अनारम्भक संयोग के विरोधी विभाग को-दोनों को उत्पन्न नहीं कर सकता। यदि दोनों प्रकार के विभागों को उत्पन्न करनेवाली क्रिया को हम एक ही समझने की भूल करें तो खिलते हुए कमल की कलिका के टूट जाने की भी संभावना करनी पड़ेगी (विकसत्कमलकुड्मलभङ्गप्रसङ्गात् )। कमल के खिलने के समय जो कर्म उसमें उत्पन्न होता है, वह उस विभाग को उत्पन्न करता है जो कमल के अनारम्भक आकाश-प्रदेश के साथ उसके संयोग का विरोधी है। यदि वह कर्म अब कमल के आरंभक संयोग के विरोधी विभाग को उत्पन्न करे तो कमल का विनाश निश्चित है। आरंभक संयोग विनाश पर ही आधारित होता है । फल यह निकला कि जो कर्म अनारंभक संयोग के विरोधी विभाग को उत्पन्न करता है, वह आरंभक संयोग के विरोधी विभाग को उत्पन्न नहीं करता । जो कर्म दूसरे अवयवों से अर्थात् परमाणुओं से विभाग (आरंभकसंयोगप्रतिद्वन्द्विभूतं विभागम् ) उत्पन्न करता है, वह कर्म द्वयणुकों का आरंभक न करनेवाले आकाश-प्रदेश के साथ होनेवाले संयोग का विरोधी विभाग उत्पन्न नहीं करता। दोनों में से कोई एक ही क्रिया संभव है-दोनों प्रकारों से विभाग को उत्पन्न करनेवाली क्रियाएं दो हैं। ऐसी भी शंका नहीं की जा सकती कि कारण-विभाग ( अवयवों से विभाग ) से ही, द्रव्य-नाश के पहले ही, देशान्तर ( आकाश )-विभाग क्यों नहीं उत्पन्न होता ? कारण यह है कि अवयव आरंभक-संयोग के विरोधी विभाग को उत्पन्न करता है, द्रव्य के होने पर (बिना द्रव्य-नाश के ) देशान्तर से इसका विभाग होना असंभव है। अतः किसी भी दशा में अवयव-विभाग ( कारण-विभाग ) के होने के बाद ही देशान्तर-विभाग होता है। २. कारणाकारण-विभागजन्य-हाथ में क्रिया उत्पन्न होने से हाथ और वृक्ष के बीच विभाग होता है, इसी से शरीर में भी 'विभक्त' (पृथक) होने का ज्ञान होता है ( स्मरणीय है कि विभाग के द्वारा दो द्रव्यों में विभक्त होने की प्रतीति होती है)। इस प्रकार हस्त-वृक्ष-विभाग ( कार्य) के लिए हस्त-क्रिया कारण है। किन्तु यही हस्त-क्रिया शरीर और वृक्ष के विभाग का कारण नहीं हो सकती, क्योंकि दोनों का एक अधिकरण नहीं है। कार्य-कारण का सम्बन्ध समानाधिकरण पदार्थों का ही होता है। शरीर-क्रिया को भी शरीर और वृक्ष के विभाग का कारण नहीं मान सकते, क्योंकि शरीर में क्रिया तो उस समय हुई ही नहीं। अवयवी ( शरीर ) के कर्म अवयवों ( हाथ, पैर आदि ) पर ही निर्भर करते हैं। सभी अवयवों में क्रिया होने पर ही शरीर की क्रिया मानी जाती है। ऐसे स्थलों में कारणाकारण-विभाग से कार्याकार्य-विभाग उत्पन्न होता है। हस्त-वृक्ष का विभाग ( कारण) होने के बाद शरीर-वृक्ष का विभाग होता है-हस्त-वृक्ष का विभाग होने से शरीर में भी विभक्त प्रत्यय होता है। ___ इन सबों का विवेचन मुक्तावली के आधार पर किया गया है। सर्वदर्शन-संग्रह में भी प्रस्तुत प्रसंग में यह विषय आवेगा।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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