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________________ सर्वदर्शनसंग्रहे दशक्षणादिप्रकारान्तरं विस्तरभयान्नेह प्रतन्यते । इत्थं पोलुपाकप्रक्रिया । पिठरपाकप्रक्रिया नैयायिकधीसंमता । ३७० ( ४ ) रक्त आदि गुणों के उत्पन्न हो जाने पर अदृष्ट ( धर्म-अधर्म ) से युक्त आत्मा के साथ संयोग होने पर परमाणु में द्रव्य का आरम्भ ( उत्पादन ) करने के लिए क्रिया होती है । [ चूँकि निर्गुण द्रव्य में क्रिया का रहना असम्भव है इसलिए रक्तादि गुणों की उत्पत्ति के अनन्तर ही द्रव्यारम्भक क्रिया उत्पन्न होती है । अदृष्ट अर्थात् अधर्म ही सभी पदार्थों का साधारण कारण है, क्योंकि अदृष्ट के आश्रय जीव हैं जो विभु होने के कारण सभी कार्यों में अदृष्ट के साथ रहते हैं । ] ( ५ ) इस क्रिया के द्वारा परमाणु का अपने पूर्व स्थान से विभाग ( Disjunction ) होता है । ( ६ ) विभाग होने पर परमाणु के पूर्व स्थान के साथ विद्यमान संयोग का विनाश होता है । ( ७ ) जब संयोग की निवृत्ति हो जाती है तब उस परमाणु का संयोग दूसरे परम्गणु के साथ होता है । ( ८ ) दो परमाणुओं के संयुक्त होने से यणुक ( दो परमाणुओं का समाहार ) का आरम्भ होता है और अन्त में ( ९ ) द्वणुक का आरम्भ होने पर कारण के रूप में स्थित गुण आदि से कार्य के रूप में स्थित गुणादि - जैसे रूप, रस, गन्धादि -- की उत्पत्ति होती है - इस प्रकार क्रमशः ये नौ क्षण होते हैं । दस क्षण में होनेवाली या दूसरे प्रकार से ( पाँच, छह आदि क्षणों में ) होनेवाली प्रक्रियाओं का वर्णन विस्तार के भय से नहीं किया जा रहा है । अस्तु इस प्रक्रिया को पीलुपाक-प्रक्रिया कहते हैं । नैयायिकों के द्वारा पिठरपाक - प्रक्रिया स्वीकृत है । [ इसकी रूपरेखा ऊपर की टिप्पणी में दी गई है । ] ' ( ११. विभागज विभाग का विवेचन ) विभागजविभागो द्विविधः -- कारणमात्रविभागजः कारणाकारणविभागजश्च । तत्र प्रथमः कथ्यते - कार्यव्याप्ते कारणे कर्मोत्पन्नं यदाऽवयवान्तराद्विभागं विधत्ते, न तदाऽऽकाशादिदेशाद्विभागः । यदा त्वाकाशादिदेशाद्विभागः, न तदाऽवयवान्तरादिति स्थितिनियमः । विभाग से उत्पन्न होनेवाला विभाग दो प्रकार का है - ( १ ) जो केवल कारण । १. पीलुपाक-प्रक्रिया में कच्चा घट जब पकाया जाता है तब उसका नाश ही हो जाता है, क्योंकि इसके द्वणुक आदि नष्ट हो जाते हैं। पाक ( अग्नि-संयोग ) से परमाणुओं में लाली आती है तथा घट पककर लाल हो जाता है क्रिया इतनी शीघ्र होती है कि घट के परिवर्तन को आँखें नहीं समझ पातीं । घट बदल जाता है । पिठरपाक-प्रक्रिया में अग्नि द्रव्य के अणुओं में सीधे प्रविष्ट हो जाती है तथा कच्चे घट का विनाश बिना किये ही अपना प्रभाव उन अणुओं पर व्यक्त करके उसी घट में गुण परिवर्तन कर देती है ।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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