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सर्वदर्शनसंग्रहे
का ज्ञान होता है उसी समय उस ( अपेक्षाबुद्धि ) का भी विनाश हो जाता है । तदनन्तर अपेक्षाबुद्धि के नाश के बाद दो द्रव्यों के ज्ञान के उत्पन्न होने के ही समय द्वित्व की निवृत्ति हो जाती है । द्रव्यों की बुद्धि ( ज्ञान ) के बाद संस्कार की उत्पत्ति के समय ही द्वित्व-संख्या ( गुण ) की बुद्धि का नाश होता है और संस्कार के अनन्तर दो द्रव्यों की बुद्धि का नाश होता है - यही नाश का क्रम निरूपित किया गया है ।"
विशेष – निम्नलिखित पाटी से द्वित्वों के उदय और नाश का क्रम अच्छी तरह समझा जा सकता है
क्षण
विनाश
( उदय क्षण )
प्रथम
द्वितीय
तृतीय
चतुर्थ
पश्चम
उदय इन्द्रियार्थसंनिकर्ष
एकत्व - जाति का ज्ञान
अपेक्षा बुद्धि
द्वित्व की उत्पत्ति
X
एकत्वजाति का ज्ञान
द्वित्वत्व - जाति का ज्ञान
X
षष्ठ
द्वित्व - संख्या का ज्ञान
३ )
अपेक्षाबुद्धि द्वित्वसंख्या
सप्तम
दो द्रव्यों का ज्ञान
( ४ )
अष्टम
संस्कार
(६)
द्वित्वसंख्या का ज्ञान द्रव्यों का ज्ञान
नवम
X
( ७ )
अब इन ज्ञानों के विनाश के लिए प्रमाण दिये जा रहे हैं जिनसे द्वित्व की निवृत्ति की पुष्टि हो सके ।
( २ )
बुद्धेर्बुद्धयन्तरविनाश्यत्वे संस्कारविनाश्यत्वे च प्रमाणम् -विवादाध्यासितानि ज्ञानान्युत्तरोत्तरकार्यविनाश्यानि क्षणिकविभुविशेषगुणत्वाच्छन्दवत् । क्वचिद् द्रव्यारम्भकसंयोगप्रतिद्वन्द्वि विभागजनककर्मसमकालमेकत्वसमकालचिन्तयाऽऽश्रयनिवृत्तेरेव द्वित्वनिवृत्तिः । कर्मसमकालमपेक्षा बुद्धिचिन्तनादुभाभ्यामिति संक्षेपः ।
अब इसके लिए प्रमाण दिया जा रहा है कि एक बुद्धि ( ज्ञान ) का विनाश दूसरी बुद्धि (ज्ञान) से या संस्कार के द्वारा होता है । इस स्थान पर जिनकी बात चल रही है वे ( प्रस्तुत, विवादग्रस्त, Under question ) ज्ञान उत्तरोत्तर कार्यों के द्वारा क्रमशः नष्ट होते जाते हैं । कारण यह है कि शब्द की भाँति, विभु द्रव्यों के विशेष गुण क्षणिक हुआ करते हैं । [ आकाश विभु द्रव्य है, इसका विशेष गुण शब्द है जो क्षणिक है । यह क्षणिक शब्द अपनी उत्पत्ति के दूसरे क्षण में अपने ही सदृश दूसरे शब्द को उत्पन्न करके स्वयं तीसरे क्षण में नष्ट हो जाता है । तो निस्कर्ष यह निकलता है कि प्रथम क्षणवाले शब्द के द्वारा द्वितीय क्षण में उत्पन्न शब्द कार्य हुआ, प्रथम क्षणवाला शब्द कारण है - वही कार्यरूप में विद्यमान द्वितीय क्षणवाला शब्द प्रथम क्षणवाले कारणभूत शब्द का विनाश हो