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सर्वदर्शनसंग्रहे
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मानत्वात् । शब्दं प्रति संयोगवदिति । वयं तु ब्रूमः - द्वित्वादिकमेकत्वद्वयविषयानित्यबुद्धिव्यङ्ग्यं न भवति । अनेकाश्रितगुणत्वात् पृथक्त्वादिवदिति ।
अब प्रश्न हो सकता है कि क्या प्रमाण है कि द्वित्व आदि की उत्पत्ति अपेक्षाबुद्धि से होती है ? इसके उत्तर में आचार्य ( उदयन ) कहते हैं कि अपेक्षाबुद्धि द्वित्वादि को उत्पन्न करने में समर्थ है । जब अपेक्षाबुद्धि को द्वित्वादि का व्यंजक सिद्ध नहीं कर पाते तब इस द्वित्वादि के द्वारा ही अपेक्षाबुद्धि की अपेक्षा ( अनुविधान ) को जाती है । जिस प्रकार शब्द के द्वारा अपेक्षित कंठादि स्थानों में संयोग होने से शब्द की उत्पत्ति होती है । [ इस अत्यन्त संक्षिप्त उत्तर को यों समझें -- जिस प्रकार व्यंग्य-अर्थ व्यंजक शब्द की अपेक्षा रखता है उसी प्रकार उत्पाद्य अर्थ भी उत्पादक की अपेक्षा करता है । यहाँ पर द्वित्वादि संख्या अपेक्षाबुद्धि की अपेक्षा रखती है । पहले ही आघात में मीमांसकों की यह मान्यता काट देते हैं कि अपेक्षाबुद्धि द्वित्वादि का व्यंजक है । ऐसा तभी होता जब अपेक्षा बुद्धि के पूर्व द्वित्वादि की सत्ता सिद्ध होती, परन्तु उसके लिए तो कोई प्रमाण ही नहीं है । तो अपेक्षा - बुद्धि की व्यंजकता सिद्ध नहीं होती । अब अपेक्ष्यमाणता ( अपेक्षा ) जहाँ जहाँ अपेक्षा होती है वहाँ-वहाँ उत्पादकता रहती है ( जिसकी उत्पादक होगा ) । उदाहरणार्थ शब्द के द्वारा संयोग की अपेक्षा की जाती है कि कंठ-तालु आदि स्थानों में वायु का संयोग हो तो शब्द उत्पन्न होगा । यहाँ संयोग शब्द का उत्पादक है । इसी अनुमान से द्वित्वादि संख्या के लिए अपेक्षाबुद्धि की आवश्यकता होनेके कारण, द्वित्वादि की उत्पादक अपेक्षाबुद्धि की सिद्धि होती है । अभिप्राय स्पष्ट है, अब दूसरे तर्कों से उसी बात की सिद्धि की जायगी । ]
माननी पड़ेगी ।" अपेक्षा होगी, वह
हमारा यह कहना है — द्वित्व आदि की अभिव्यक्ति उस अनित्य बुद्धि ( अपेक्षाबुद्धि ) के द्वारा नहीं हो सकती जिसमें दो या उससे अधिक एकत्व ही विषय के रूप में आते हैं, क्योंकि ये (द्वित्वादि ) अनेक पदार्थों में आश्रित रहनेवाले गुण हैं जिस तरह पृथक्त्व गुण [ अनेक पदार्थों में ही रहता है ] ।
विशेष- इस दूसरे तर्क का यह अभिप्राय । दो एकत्वों के विषय में अपेक्षाबुद्धि होती है कि एक यह है, एक यह । अपेक्षाबुद्धि अनित्य है । चूंकि द्वित्व अनेक पदार्थों में रहनेवाला गुण है इसलिए अपेक्षाबुद्धि के द्वारा इनकी अभिव्यक्ति के लिए वस्तु का एकाश्रित रहना जरूरी है । द्वित्व संख्या दो पदार्थों में रहती है, त्रित्व - संख्या तीन पदार्थों में रहती है इत्यादि । जैसे पृथक्त्व-गुण के लिए अनेक पदार्थों रहना आवश्यक है—' हरि से श्याम पृथक् है, श्याम से शंकर ।' इन उदाहरणों में पृथक्त्व ( Separateness ) की वृत्ति अनेक व्यक्तियों में है । इस प्रकार पृथक्त्व के विषय में होनेवाली अपेक्षाबुद्धि के द्वारा
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में
१. सभी कारण या तो शापक होते हैं या जनक । अपेक्षाबुद्धि यदि ज्ञापक नहीं है तो जनक है ।