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सर्वदर्शनसंग्रहे
( ९८४ ई० ) की किरणावली, श्रीधर की न्यायकन्दली, श्रीवत्स ( १०२५ ई० ) की लीलावती मुख्य हैं । इन टीकाओं पर भी एकाधिक टीकाएं हैं। ____ कणाद के सूत्रों पर एक रावणभाष्य भी मिलता है, किन्तु सबसे प्रौढ़ टीका है शंकर मिश्र की । शंकर ( १४२५ ई० ) मिथिला के बहुत बड़े विद्वान् तथा सुप्रसिद्ध भवनाथ मिश्र ( अयाची मिश्र ) के पुत्र थे। इनका निवासस्थान सरिसव ( दरभंगा ) में था। इन्होंने कणादसूत्र पर उपस्कार-टीका, प्रशस्तपाद-भाष्य पर कणादरहस्य-टीका, आमोद ( न्याय-कुमुमांजलि की टीका, ) कल्पलता ( आत्मतत्त्वविवेक की टीका ), आनन्दवर्धन ( खण्डनखण्डखाद्य की टीका ), भेदरत्नप्रकाश (श्रीहर्ष के खण्डनखण्डखाद्य का खण्डन करनेवाला ग्रन्थ ) इत्यादि अनेक ग्रन्थ लिखे। इसके अतिरिक्त भरद्वाज, जयनारायण, नागेश ( १७१४ ई०) तथा चन्द्रकान्त ( १८८० ई० ) ने कणादसूत्र की वृत्तियाँ भी लिखीं। वैशेषिक दर्शन पर स्वतन्त्र ग्रन्थ में ज्ञानचन्द्र ( ६०० ई० ) की दशपदार्थो, उदयन की लक्षणावली, शिवादित्य ( १०५० ई० ) की सप्तपदार्थो, वल्लभन्यायाचार्य ( ११५० ई०) की न्याय-लीलावती तथा लौगाक्षिभास्कर ( १३२५ ई० ) की तर्ककौमुदी हैं । इन पर कई टीकाएं अन्य आचार्यों की हैं। __ प्रसिद्धि की दृष्टि से विश्वनाथ न्यायपञ्चानन का भाषा-परिच्छेद तथा अन्नंभट्ट का तर्कसंग्रह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है । भाषा-परिच्छेद पर लेखक ( १६३४ ई०) को ही टीका न्यायसिद्धान्तमुक्तावली है जिस पर रुद्र, दिनकर, त्रिलोचन आदि आचार्यों को टीकाएं हैं । रामरुद्र ने तो दिनकरी पर भी टीका लिखी है। अन्नभट्ट ( १६९० ई० ) ने अपने तर्क संग्रह पर स्वयं दीपिका टीका लिखी, जिस पर नीलकंठ की प्रकाशटीका और उस पर भी लक्ष्मीनृसिंह की भास्करोदया टीका है। तर्कसंग्रह पर बहुत-सी दूसरी टीकाएं भी हैं जिनका उल्लेख करना यहाँ अभीष्ट नहीं । तर्कसंग्रह न्यायवैशेषिक के अध्ययन का प्रथम सोपान है। इसकी शैली अत्यन्त सुबोध, सरल और संक्षिप्त है । इस प्रकार वैशेषिक-दर्शन के प्रमुख ग्रन्थों का उल्लेख करने से इसकी 'विशेषता' प्रकट होती है। परमेश्वरसाक्षात्कारश्च श्रवणमननभावनाभिर्भावनीयः। यदाह-- २. आगमेनानुमानेन ध्यानाभ्यासबलेन च ।
त्रिधा प्रकल्पयन्प्रज्ञां लभते योगमुत्तमम् ॥ इति । तत्र मननमनुमानाधीनम् । अनुमानं च व्याप्तिज्ञानाधीनम् । व्याप्तिज्ञानं च पदार्थविवेकसापेक्षम् । अतः पदार्थषटकम् 'अथातो धर्म व्याख्यास्यामः' ( वै० सू० ११११) इत्यादिकायां दशलक्षण्यां कणभक्षेण भगवता व्यवस्थापितम्।
परमेश्वर का साक्षात्कार ( ज्ञान ), श्रवण ( शास्त्र का ), मनन (चिन्तन ) तथा भावना ( अन्तःकरण में ध्यान करना, निदिध्यासन Meditation ) के द्वारा पाया जा