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शेव-वर्शनम्
२८१ दूसरी जगह भी कहा है-'सम्पूर्ण संसार ( पक्ष ) जो विवाद का विषय है, वह किसी बुद्धिमान् कर्ता के द्वारा निर्मित है क्योंकि यह ( संसार ) कार्य है। हम दोनों (पूर्वपक्षी, सिद्धान्ती ) के मत से यह कार्य के रूप में सिद्ध है ही , जिस तरह घट आदि को [ हम कार्य मानकर किसी कर्ता के द्वारा निर्मित मानते हैं । '
चूंकि इस ईश्वर ने सभी वस्तुओं का निर्माण किया है इसीलिए उसकी सर्वज्ञता सिद्ध हो गई । अज्ञ व्यक्ति किसी को उत्पन्न नहीं कर सकता। [ जब तक सर्वज्ञता नहीं होगी, सभी वस्तुओं का निर्माण नहीं होगा । जो जिसे जानता है उसी का निर्माण कर सकता है। ] श्रीमान् मृगेन्द्र ने कहा है--'सभी वस्तुओं की उत्पत्ति करने के कारण वह सर्वज्ञ है, वह वस्तुओं को साधन, अंग और उनके फल के साथ [ जानता और बनाता है। दर्शपूर्णमास यज्ञ का सम्पादन करनेवाला व्यक्ति उसके साधनों ( समिधा, पुरोडाशादि ), अंगों (प्रयाज आदि ) तथा फल ( स्वर्गादि ) को भी जानता है । ] जो व्यक्ति जिस काम को जानता है, वही काम वह करता है--यह तो अच्छी तरह निश्चित है।'
(३. ईश्वर का शरीर धारण ) अस्तु तहि स्वतन्त्रः ईश्वरः कर्ता । स तु नाशरीरः। घटादिकार्यस्य शरीरवता कुलालादिना क्रियमाणत्वदर्शनात् । शरीरवत्त्वे चास्मदादिवदीश्वरः । क्लेशयुक्तोऽसर्वज्ञः परिमितक्ति प्राप्नुयादिति चेत्--मैवं मंस्थाः। अशरीरस्याप्यात्मनः स्वशरीरस्पन्दादौ कर्तृत्वदर्शनात् ।।
[पूर्वपक्षी कहते हैं- ] अच्छा मान लिया कि ईश्वर स्वतन्त्र कर्ता है, किन्तु यह भी तो मानना होगा कि वह अशरीर नहीं है (शरीरधारी है )। घटादि कार्यों [ के जो दृष्टान्त आप देते हैं ] वे तो शरीर धारण करनेवाले कुम्भकारादि के द्वारा निर्मित होते हैं । शरीरधारी ईश्वर मानने का कुपरिणाम यह होगा कि वह भी हमलांगों की तरह माना जायगा । [ हमलोगों के समान ] क्लेशों से युक्त, असर्वज्ञ होकर केवल एक निश्चित सीमा के ही भीतर शक्ति प्राप्त करेगा। [शैव दर्शनकारों का उत्तर है- ] ऐसी बात नहीं समझें । आत्मा तो शरीरधारण नहीं करती, किन्तु [ जिस शरीर के भीतर वास करती है उस ] अपने शरीर का स्पन्दन, संचालन आदि तो वही करती है, [ इसलिए 'शरीरधारी ही कर्ता होंगे' इस प्रकार की व्याप्ति आप नहीं सिद्ध कर सकते । शरीर की सहायता के बिना भी कोई कर्ता हो सकता है । ईश्वर भी शरीरहीन होकर हो सकता है । ] ____ अभ्युपगम्यापि ब्रूमहे । शरीरवत्त्वेऽपि भगवतो न प्रागुक्तदोषानुषङ्गः। परमेश्वरस्य हि मलकर्मादिपाशजालासम्भवेन प्राकृतं शरीरं न भवति, कि तु शाक्तम् । शक्तिरूपरीशानादिभिः पंचभिः मंत्रः मस्तकादिकल्पनायाम्ईशानमस्तकः, तत्पुरुषववत्रः, अघोरहृदयः, वामदेवगुह्यः, सद्योजातपादः ईश्वरः-इति प्रसिद्धया यथाक्रमानुग्रहतिरोभावदानलक्षणस्थितिलक्षणोद्