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________________ शेव-दर्शनमः २७९ सीमा पर पहुंची हई है। ऊपर विवाद है कि पदार्थ का कर्ता कोई है कि नहीं । अब अनुमान होता है सारे पदार्थ सकर्तृक ( साध्य ) हैं, क्योंकि वे कार्य हैं, जिस तरह घट होता है। अनुमान के अनन्तर अन्वय और व्यतिरेक के द्वारा व्याप्ति की स्थापना की जाती है । ( अन्वय-) जो कुछ भी कार्य ( उक्तासाधन ) है वह सकर्तृक ( उक्तमाध्यम् ) होता है जैसे घट, पट आदि । ( व्यतिरेक-) जो वस्तु कार्य नहीं, वह मकर्तृक भी नही है, जैसे आत्मा आदि ।] परमेश्वर के विषय में ( सिद्धि के लिए ) जा अनुमान दिया गया है उसकी प्रामाणिकता की सिद्धि दूसरे स्थान पर दी गई है, इसलिए यहाँ पर छोड़ देते हैं । । यदि शरीर, इन्द्रिय, भुवन आदि पदार्थों का कोई भी कर्ता नहीं होता तो अपनी इच्छा से ही सबों की उत्पत्ति माननी पड़ती। वैसी दशा में जीव को क्या पड़ी थी कि दुःख के साधन ग्रहण करता ? वह केवल सुख के साधन ही खोजता किन्तु जीव का इसमें वश चले तव ना ? अतः सुख-दुःख का कोई दूसरा नियन्ता जरूर होगा । प्राणियों के द्वारा किये गये कर्मों की अपेक्षा रखते हुए ही ईश्वर संसार का कर्ता है। ] ___ 'जीव अज्ञ है, वह अपने सुख-दुःख को नियंत्रित करने में असमर्थ है, ईश्वर से प्रति होकर ही या तो वह स्वर्ग जाता है या नरक ( श्वभ्र )।'' इस यात्रा में प्राणियों के कर्मों की अपेक्षा रखते हुए ही ईश्वर का का होना सिद्ध होता है। न च स्वातन्त्र्यविहतिरिति वाच्यम् । करणापेक्षया कर्तुः स्वातन्त्र्यविहतेरनुपलम्भात् । कोषाध्यक्षापेक्षस्य राज्ञः प्रसादादिना दानवत् । यथोक्त सिद्धगुरुभि :३. स्वतन्त्रस्याप्रयोज्यत्वं करणादिप्रयोक्तता। कर्तुः स्वातन्त्र्यमेतद्धि न कर्माद्यनपेक्षता ॥ इति ॥ तथा च तत्तत्कर्माशयवशाद् भोग-तत्साधन-तदुपानादिविशेषज्ञः कर्तानुमानादिसिद्ध इति सिद्धम् । तदिदमुक्तं तत्रभवद्भिबृहस्पतिभिः ४. इह भोग्यभोगसाधनतदुपादानादि यो विजानाति । तमृते भवेन्न हीदं पुंस्कर्माशयविपाकज्ञम् ।। इति । १ तुल० दुर्योधन की यह प्रसिद्ध उकिन -- जानामि धर्म न च मे प्रवृत्तिर्जानाम्गधर्म न च मे निवृनिः । केनापि देवेन हृदि स्थितेन यथा नियुक्तोऽस्ति नभा करोमि ।।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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