________________
सर्वदर्शनसंग्रहे
इसलिए महोपनिषद् में कहा गया है—' जैसे पक्षी और सूत्र, जैसे नाना प्रकार के वृक्षों के रस, जैसे नदियां और समुद्र, जैसे जीव और वृक्ष, जैसे अणुता और धारणशक्ति, जैसे शुद्ध जल और नमक, जैसे चोर और अपहरणीय वस्तु, जैसे पुरुष और उसके विषय, जैसे अज्ञ जीवों का समूह और प्राणादि का नियामक – ये सब भिन्न हैं, उसी प्रकार जीव और ईश्वर विभिन्न लक्षणों के होने के कारण सदा ही भिन्न हैं ।। ३४-३६ ।। फिर भी सूक्ष्मरूप होने के कारण परम ( सर्वोच्च ) हरि को मन्द दृष्टिवाले पुरुष जीव से भिन्न रूप में नहीं देखते हैं, यद्यपि वे ही ( हरि ) सबों को कार्य में प्रवृत्त करते हैं ॥ ३७ ॥ इन दोनों की विलक्षणता ( Difference ) जानने पर मनुष्य मुक्त हो जाता है, नहीं तो वह बन्धन में पड़ा रहता है ॥ ३८ ॥
२३८
विशेष -- छान्दोग्योपनिषद् के उक्त नव उसमें भी क्रम में कुछ परिवर्तन किया गया है। कुछ एकरसता -सी लगती है ।
उदाहरणों का उल्लेख यहाँ किया गया है, एक ही बात-मेद का प्रतिपादन करने से
३९. ब्रह्मा शिवः सुराद्याश्च लक्ष्मीरक्षरदेहत्वादक्षरा ४०. स्वातन्त्र्यशक्तिविज्ञानसुखाद्य रखिलैर्गुणैः निःसीमत्वेन ते सर्वे तद्वशाः
४१. विष्णुं सर्वगुणैः पूर्णं ज्ञात्वा
शरीरक्षरणात्क्षराः । तत्परो हरिः ॥
सर्वदैव च ॥ इति ।
संसारवजितः । निर्दुःखानन्दभुङ् नित्यं तत्समीपे स मोदते ॥
४२. मुक्तानां चाश्रयो विष्णुरधिकोऽधिपतिस्तथा ।
तद्वशा एव ते सर्वे सर्वदैव स ईश्वरः ॥ इति च ।
'ब्रह्मा, शिव, इन्द्रादि क्षर कहलाते हैं, क्योंकि इनके शरीर नाशवान् हैं, अनश्वर शरीर होने के कारण लक्ष्मी अक्षरा है, हरि इन दोनों से परे हैं ॥ ३९ ॥ स्वतन्त्रता, "शक्ति, विज्ञान, सुख आदि सभी गुणों के ईश्वर में असीम मात्रा में होने के कारण सर्वदा सभी पदार्थ उनके वश में रहते हैं ॥ ४० ॥'
'विष्णु को सभी गुणों से परिपूर्ण जानकर, पुरुष संसार ( आवागमन ) से मुक्त हो जाता है, दुःख से रहित आनन्द का भोग करते हुए नित्यरूप से वह ( पुरुष ) परमात्मा के पास सुख भोग करता है ॥ ४१ ॥ मुक्त पुरुषों के आश्रय विष्णु ही हैं, सर्वोच्च स्वामी वे ही हैं। उन्हीं के वश में वे सब हमेशा के लिए रहते हैं, वे ही ईश्वर हैं ॥ ४२ ॥ '
( १२. एक के ज्ञान से सभी वस्तुओं का ज्ञान - इसका अर्थ )
एकविज्ञानेन सर्वविज्ञानं च प्रधानत्वकारणत्वादिना युज्यते न तु सर्वमिथ्यात्वेन । न हि सत्यज्ञानेन मिथ्याज्ञानं सम्भवति । यथा प्रधानपुरुषाणां