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________________ २२७ पूर्णप्रज्ञ-दर्शनम् १०. त्वं पुरा सागरोत्पन्नो विष्णुना विधृतः करे। नमितः सर्वदेवश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तु ते ॥ इति । दूसरी जगहों में चक्रधारण के विशेष मन्त्र भी दिये गये हैं- 'हे सुदर्शन, तुम बहुत, ज्वालाओं से युक्त हो, करोड़ों सूर्य के बराबर तुम्हारी ज्योति है, मैं अज्ञान के कारण अन्धा हूँ, मुझे विष्णु का मार्ग प्रतिदिन दिखलाओ ॥ ९ ॥' 'तुम पहले समुद्र में उत्पन्न हुए थे विष्णु ने तुम्हें अपने हाथ में धारण किया था, सभी देवताओं ने तुम्हें प्रणाम किया है, हे पांचजन्य शंख, तुम्हें प्रणाम करता हूँ ॥ १०॥' (६ क. नामकरण और भजन ) नामकरणं पुत्रादीनां केशवादिनाम्ना व्यवहारः, सर्वदा तन्नामानुस्मरणार्थम् । भजनं दशविधं-वाचा सत्यं हितं प्रियं स्वाध्यायः, कायेन दानं परित्राणं, परिरक्षणं, मनसा दया स्पृहा श्रद्धा चेति । अत्रैकैकं निष्पाद्य नारायणे समर्पणं भजनम् । तदुक्तम् 3. अजूनं नामकरणं भजनं दशधा च तत् । इति । एवं शेयत्वादिनापि भेदोऽनुमातव्यः । ____ नामकरण का अभिप्राय है अपने पुत्र आदि का केशव आदि ( वैष्णव ) नाम रखकर पुकारना जिससे भगवान के नामों का अनुस्मरण होता रहे। भजन दस प्रकार का हैवाणी के द्वारा सत्य, हित, प्रिय वचन तथा स्वाध्याय; शरीर से दान, बचाव और रक्षा करना; मन से दया, स्पृहा ( इच्छा ) और श्रद्धा। इनमें एक-एक की प्राप्ति कर लेने पर उसे नारायण को समर्पण कर देना ही भजन है। ऐसा ही कहा है-अंकन, नामकरण तथा दस प्रकार के भजन-यही सेवा है। [ इस प्रकार सेव्य-हेतु से भेद का अनुमान किया गया । वैसे ही ज्ञेयत्व आदि हेतुओं के द्वारा भी भेद का अनुमान हो सकता है। विशेष-ज्ञेयत्व के द्वारा भेद का अनुमान इस प्रकार होगापरमात्मा जीव से भिन्न है क्योंकि जीव के द्वारा वह ज्ञेय है, जो जिसके द्वारा ज्ञेय होता है वह उससे भिन्न है, जैसे जीव से घट । ( ७. श्रुति-प्रमाण से भेद की सिद्धि ) तथा श्रुत्यापि भेदोऽवगन्तव्यः । 'सत्यमेनमनु विश्वे मदन्ति, राति देवस्य गृणतो मघोनः।' 'सत्यः सो अस्य महिमा गृणे शवो, यज्ञेषु विप्रराज्ये ।' 'सत्य आत्मा, सत्यो जीवः, सत्यं भिदा सत्यं भिदा सत्यं भिदा, मैवारुवण्यो मैवारवण्यो मैवारुवण्य' इति मोक्षानन्दभेदप्रतिपादकश्रुतिभ्यः । ____उसी तरह श्रुति-प्रमाण ( Revelation ) से भी भेद की सत्ता जानी जा सकती है । 'यह सच है कि स्तुति करनेवाले धनयुक्त ( अथवा इन्द्र ) देव के इस मित्र ( राति =
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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