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________________ २२६ सर्वदर्शनसंग्रहे नष्ट करके उस स्वर्ग में प्रवेश करता है-जहाँ राग से हीन संन्यासी लोग जा सकते हैं ॥ ५ ॥ बाहु में जिस सुदर्शन चक्र को धारण करके देवता लोग चलते-चलते उस स्वर्गलोग में पहुंचे, जिस चक्र से अंकित होकर मनुओं ने संसार की सृष्टि की थी, उसी चक्र को ब्राह्मण लोग धारण करते हैं ॥ ६ ॥ विशेष—इन दोनों श्लोकों तथा अगले श्लोक में वैदिक छन्द का प्रयोग है, ऋग्वेद की एक संहिता शाकल्यसंहिता के परिशिष्ट के नाम से इनका उद्धरण दिया गया है। दुरिता = दुरितम् द्वितीया एकवचन में 'डा' आदेश हो गया है। ब्रह्माण्डपुराण में अंकन विषय में कहा गया है कृत्वा धातुमयों मुद्रां तापयित्वा स्वकां तनुम् । चक्रादिचिह्नितां भूप धारयेद्वैष्णवो नरः । नारदपुराण में चक्रधारण के विषय में यह लिखा है द्वादशारं तु षट्कोणं वलयत्रयसंयुतम् । हरे सुदर्शनं तप्तं धारयेत्तद्विचक्षणः ॥ यह सुदर्शन देवताओं को बल देता है; उसी से देवताओं ने स्वर्ग पर विजय पायी, मनुओं ने संसार की सृष्टि की। ७. तद्विष्णोः परमं पदं येन गच्छन्ति लाञ्छिताः। उरुक्रमस्य चिहरङ्किता लोके सुभगा भवामः ॥ इति । 'अतप्ततनून तदामो अश्नुते श्रितास इद्वहन्तस्तत्समासत' (ते. आ० १११) इति तैत्तिरीयकोपनिषच्च । स्थानविशेषश्चाग्नेयपुराणे प्रदर्शितः ८. दक्षिणे तु करे विप्रो बिभृयाच्च सुदर्शनम् । सव्येन शङ्ख बिभृयादिति ब्रह्मविदो विदुः ।। विष्णु का वह पद सबसे अच्छा है ( वैकुण्ठ ) जिससे होकर अंकित पुरुष पार करते हैं । बड़े पग ( Step ) वाले विष्णु के चिह्न से अंकित होकर हम लोग संसार में ऐश्वर्ययुक्त बनें ॥ ७ ॥' तैत्तिरीयक उपनिषद् में भी कहा है-'जिसका शरीर तप्त ( अंकित ) नहीं है, वह पुरुष कच्चा ( आमः ) है, उसे ( स्वर्ग को) नहीं पाता। उसको धारण करनेवाले भक्त ( श्रितासः ) गण ही उसे प्राप्त करते हैं।' (ते० आ० १११ ) । [ अंकन करने के लिए ] विशेष स्थानों का उल्लेख अग्नि पुराण में किया गया है-'ब्राह्मण दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र धारण करे, शंख की छाप बायें हाथ में धारण करे, ऐसा ब्रह्मवेत्ता लोग मानते हैं।' अन्यत्र चक्रधारणे मन्त्रविशेषश्च दर्शितः९. सुदर्शन महाज्वाल कोटिसूर्यसमप्रभ !। अज्ञानान्धस्य मे नित्यं विष्णोर्मार्गप्रदर्शय ॥
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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