SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१८ सर्वदर्शनसंग्रहे क्योंकि लोग स्वरूप को भेद नहीं मानते, धर्म को ही भेद मानते - गो और गवय में धर्मों का अन्तर है, अतः गवय मिल जाने पर भी गाय खोजते, परन्तु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है । ] इसीलिए विष्णुतत्त्वनिर्णय ( लेखक - आनन्दतीर्थ, समय ११७० ई० ) में कहा गया - विशेषण और विशेष्य रहने से भेद की सिद्धि नहीं होती । कारण यह है कि विशेषण और विशेष्य का सम्बन्ध स्वयं भेद की अपेक्षा रखता है । [ जो स्वयं भेद से सिद्ध होता है, भेद को क्या सिद्ध करेगा ? ] फल यह होगा कि धर्मी और प्रतियोगी की अपेक्षा से भेद की सिद्धि होती है तथा भेद के आधार पर धर्मो और प्रतियोगी की सिद्धि होती हैइस प्रकार अन्योन्याश्रय-दोष होने से भेद ही युक्तियुक्त नहीं हो सकता । पदार्थ के स्वरूप को ही भेद कहते हैं । [ उसके धर्म के आधार पर किये गये भेद को नहीं ] - इत्यादि । विशेष - ' यह एक प्रतियोगी से युक्त भेद को धारण करता है - इसमें भेद विशेषण है, पट विशेष्य । 'पट में कुछ प्रतियोगी से युक्त भेद रहता है' —यहाँ भेद विशेष्य है, पट विशेषण । विशेषण और विशेष्य में भेद होना सुप्रसिद्ध है, जैसा कि 'राज्ञ: ( विशेषण ) पुरुष: ( विशेष्य ) ' में हम देखते हैं । यदि विशेषण - विशेष्य के रूप में भेद को सिद्ध किया जायगा तो अन्योन्याश्रय - दोष होगा । सम्बन्ध भेद के ऊपर आधारित है । इस भेद की सिद्धि धर्मित्व और प्रतियोगित्व की प्रतीति के ऊपर निर्भर करती है । दूसरी ओर, यह प्रतीति भेद की प्रतीति के बिना सम्भव ही नहीं है, अतः अन्योन्याश्रय - दोष होता है । विशेषण और विशेष्य का इस प्रकार 'भेदयुक्त पट' या 'पट में भेद' इनमें विशेषण- विशेष्य के रूप में जो भेद की प्रतीति होती है, वह भेद की सिद्धि करने में युक्त नहीं है । फिर भेद है किस रूप का ? उत्तर होगा कि पदार्थ का स्वरूप ही भेद है । विष्णुतत्त्व निर्णय में यही कहा गया है । अत एव गवार्थिनो गवयदर्शनान्न प्रवर्तन्ते, गो शब्दं च न स्मरन्ति । न च नीरक्षीरादौ स्वरूपे गृह्यमाणे भेदप्रतिभासोऽपि स्यादिति भणनीयम् । समानाभिहारादिप्रतिबन्धकबलाद् भेदभानव्यवहाराभावोपपत्तिः । इसीलिए गौ का अन्वेषण करनेवाले गवय ( गौ के समान जन्तुविशेष ) देखने के बाद आगे नहीं बढ़ते ( मानो उन्होंने गाय पा ली हो ) तथा गो शब्द का स्मरण भी नहीं करते [ चूंकि किसी वस्तु का सबों से विलक्षण स्वरूप जान लेना ही उस वस्तु के विशिष्ट व्यवहार का कारण है इसीलिए सबों से विलक्षण गौ के स्वरूप को लोग गवय में भी देख लेते हैं। और ऐसा होने पर भी अज्ञान के कारण गौ का अन्वेषण करने वालों की प्रवृत्ति या गौ का स्मरण करना-ये व्यवहार नहीं होते । ] ऐसी भी शंका नहीं कर सकते कि [ चूँकि भेद एक वास्तविक पदार्थ है और प्रत्यक्ष का विषय है, इसलिए ] जल से युक्त दूध आदि को आँखों
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy