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________________ ( ४४ ) सर्वदर्शनसंग्रह का उद्धार करने में महामहोपाध्याय पं० वासुदेवशास्त्री अभ्यंकर का नाम सबसे आगे की पंक्ति में रखा जाता है । अपनी संस्कृत-टीका से युक्त संस्करण में उन्होंने जैसे अध्यवसाय का प्रदर्शन किया है वह अन्यत्र दर्लभ है। पाण्डित्यपूर्ण उपोद्घात में दर्शनों का मन्थन करके उन्होंने नवनीतरूप सार-संकलन का भी प्रयास किया है। सच पूछे तो आगे की पीढी के लिए उन्होंने बहुत-सा काम सरल कर दिया है । उक्त महामनीषी के ग्रन्थ को उपजीव्य मानकर ही यह संस्करण प्रस्तुत किया गया है अतः उनके सम्मुख मैं नतमस्तक हैं। इसके अतिरिक्त कविल और गफ के अनुवाद एवं डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन् तथा डॉ० धीरेन्द्रमोहनदत की पुस्तकों से जो अंगरेजी शब्दावलियां ली गई हैं इसलिए मैं उनका कृतज्ञ हूँ। प्रस्तुत व्याख्या मेरे चार वर्षों के अध्यवसाय का परिणाम है। इस अवधि में विभिन्न स्थानों के सहयोगियों, शुभाभिलाषियों एवं शिष्यों से इस कार्य में जो प्रेरणा मिलती रही है वही मेरा सबसे बड़ा बल रहा है। यद्यपि इसे सुन्दर, सरल और आधुनिक बनाने की पूरी चेष्टा की गई है फिर भी दोष रह जाना स्वाभाविक है । ग्रन्थ के विषय तथा आकार के अनुरूप विशद भूमिका नहीं दे सका, पाठक क्षमा करेंगे। इस पर तो पृथक् रूप से भूमिका लिखी जानी चाहिये जो भारतीय दर्शन-साहित्य के अध्ययन में अनिवार्य भी मानी जाय । प्रस्तुत भूमिका तो परम्परा का निर्वाह मात्र है। काशी हिन्दूविश्वविद्यालय के संस्कृत-विभाग के अध्यक्ष आदरणीय डा. सिद्धेश्वर भट्टाचार्य जी ने इस कृति का निरीक्षण करके जो प्राक्कथन लिखने की कृपा की है, उससे लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ। सर्वतन्त्रस्वतन्त्र पूज्यपाद स्वामी श्रीमहेश्वरानन्द सरस्वती (पूर्वाश्रम-कविताकिकचक्रवर्ती पं० महादेवशास्त्री) जी ने जो प्रस्तुत ग्रन्थ को अपने आशीर्वचनों से अलंकृत किया है इसे मैं अपना भागधेयोत्कर्ष अथवा आपकी अहेतुकी दया ही मानता हूँ। वाराणसीस्थ बृहत्तर प्रकाशन संस्थान चौखम्बा विद्याभवन के अध्यक्षबन्धुओं ने इतने बड़े ग्रन्थ का प्रकाशन-भार लेकर मेरे सदुद्देश्य की सफलता में जो तत्पर सहयोग दिया है उसके लिए मैं उन्हें हृदय से धन्यवाद देता हूँ। यदि यह कृति पाठकों के तनिक भी काम आई तो मैं अपना परिश्रम सफल समझंगा। काशी । २०-६-६४ । -उमाशंकरशर्मा 'ऋषि'
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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