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________________ १९८ सर्वदर्शनसंग्रहे व्यक्ति जानता है वह अविद्या से मृत्यु ( ज्ञानोत्पत्ति का प्रतिबन्धक, पुण्य-पापरूपी प्राक्तन कर्म ) को पारकर विद्या ( परमात्मा की उपासना ) से अमृत ( मोक्ष ) प्राप्त करता है' ( ई० ११ ) । विशेष - कर्मफल की नश्वरता तथा ब्रह्मज्ञान के फल की स्थिरता का प्रतिपादन करनेवाली अन्य श्रुतियाँ हैं—तद्यथेह कर्मचितो लोकः क्षीयत एवमेवामुत्र पुण्यचितो लोकः क्षीयते ( छा० ८।१।६ ); अन्तवदेवास्य तद्भवति ( वृ० ३२८१० ), न ध्रुवे: प्राप्यते ध्रुवं कर्मभि: ( का० २1१० ) । इस विषय में अनुमान इस प्रकार होगा - ( १ ) कर्मफल नश्वर है, क्योंकि यह उत्पन्न होता है ( हेतु ) जैसे घटादि ( उदाहरण ) | ( २ ) ब्रह्मज्ञान का फल अविनाशी है, क्योंकि यह उत्पन्न नहीं होता, जैसे आत्मा । अर्थापत्ति प्रमाण से भी यह सिद्ध होगा - शुक, वामदेव आदि ने अपने कर्मों का त्याग किया था, यदि हम कर्मफल की नश्वरता नहीं मानें तो उसकी सिद्धि नहीं हो सकती । २१ वें श्लोक में केवल कर्म या केवल ब्रह्मज्ञान की निन्दा की गई है, २२ वें दोनों का अंगांगिसम्बन्ध दिखलाया गया है । तदुक्तं पाश्वरात्र रहस्ये २३. स एव करुणासिन्धुर्भगवान्भक्तवत्सलः । उपासकानुरोधेन भजते मूर्तिपश्वकम् ॥ २४. तदर्चाविभवव्यूहसूक्ष्मान्तर्यामिसंज्ञकम् । यदाश्रित्यैव चिद्वर्गस्तत्तज्ज्ञेयं प्रपद्यते २५. पूर्वपूर्वोदितोपास्तिविशेषक्षीणकल्मषः उत्तरोत्तरमूर्तीनामुपास्त्यधिकृतो भवेत् ॥ २६. एवं ह्यहरहः श्रौतस्मार्तधर्मानुसारतः । उक्तोपासनया पुंसां वासुदेवः प्रसीदति ॥ पाञ्चरात्ररहस्य में कहा है--' वे ही भगवान् जो दया के समुद्र तथा भक्ति पर वात्सल्य प्रेम रखनेवाले हैं, उपासकों या भक्तों के आग्रह से पांच प्रकार की मूर्तियाँ धारण करते हैं ।। २३ ।। वे हैं, अर्चा, विभव, व्यूह, सूक्ष्म तथा अन्तर्यामी, जिनका आश्रय लेकर जीवों का समूह क्रमशः ज्ञान की अवस्थाओं को प्राप्त करता है || २४ ॥ मनुष्य के पाप उक्त मूर्तियों में हर पहली मूर्ति की उपासना से नष्ट होते जाते हैं और भक्त उधर हर दूसरी मूर्ति की उपासना का अधिकारी बनते जाता है ।। २५ ।। इस प्रकार श्रुतियों और स्मृतियों में कहे गये धर्मों ( कर्तव्यों) के अनुसार उपर्युक्त [ मूर्तियों की ] उपासना से मानवों पर वासुदेव भगवान् प्रसन्न होते हैं ।। २६ ।। २७. प्रसन्नात्मा हरिभक्त्या निदिध्यासनरूपया । अविद्यां कर्मसङ्घातरुपां सद्यो निवर्तयेत् ॥
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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