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सर्वदर्शनसंग्रहे
भाष्यमकार्षीत् । तत्र 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' (ब्र० सू० १1१1१ ) इति प्रथमसूत्रस्यायमर्थः - अत्राथशब्दः पूर्ववृत्तकर्माधिगमनानन्तर्यार्थः । तदुक्तं वृत्तिकारेण - वृत्तात्कर्माधिगमादनन्तरं ब्रह्म विविदिषतीति ।
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तो उपर्युक्त सारी बातों को हृदय में बेठाकर, बड़ी-बड़ी ( मुख्य ) उपनिषदों से मतों का आश्रय लेते हुए, भगवान् बोधायनाचार्य की लिखी हुई ब्रह्मसूत्र की वृत्ति को बहुत विशालकाय देखकर रामानुज ने शारीरक -मीमांसा के ऊपर भाष्य ( श्रीभाष्य ) लिखा ।
इसमें 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' इस ब्रह्मसूत्र के प्रथम सूत्र का अर्थ इस प्रकार है- 'अथ ' का अर्थ है, अभी तक जिन कर्मों का वर्णन [ मीमांसासूत्र में ] किया गया है उसको समझ लेने के बाद । वृत्तिकार ने कहा ही है- 'अभी तक वर्णित कर्मों को समझने के बाद ही ब्रह्म को जानना चाहता है ।'
विशेष- रामानुज के श्रीभाष्य लिखने के पूर्व भी विशिष्टाद्वैत का सिद्धान्त था । विशेषकर विष्णुपुराण पर ही यह सम्प्रदाय अवलम्बित था जिसकी साम्प्रदायिक टीका श्रीनाथमुनि ने की थी । बोधायन और टंकाचार्य ने ब्रह्मसूत्र की वृत्तियाँ लिखीं तथा द्रमिडा - चार्य ने भाष्य लिखा था । रामानुज ने इन मतों का मन्यन करके एक सुन्दर रीति से सम्प्रदाय का प्रवर्तन किया, यही उनका अवदान है । रामानुज का समय है १०१९ से ११३९ ई० । जब कि ईसा के पूर्व से ही महाभारत, पञ्चरात्र आदि ग्रन्थों से यह सम्प्रदाय पुष्पित - पल्लवित हो रहा था ।
'अथ' ( इसके बाद ) अपने साथ कुछ आकांक्षा रखता है कि किसके बाद ? दो मीमांसाओं के बीच में इसका प्रयोग बतलाता है कि ब्रह्म की जिज्ञासा कर्मों की मीमांसा के अनन्तर ही होती है ।
अतः शब्दो हेत्वर्थः । अधोतसाङ्गवेदस्याधिगततदर्थस्य विनश्वरफलात्कर्मणो विरक्तवाद हेतोः स्थिरमोक्षाभिलाषुकस्य तदुपायभूतब्रह्मजिज्ञासा भवति । ब्रह्मशब्देन स्वभावतो निरस्तसमस्तदोषानवधिकातिशयासंख्येयकल्याणगुणः पुरुषोत्तमोऽभिधीयते ।
एवं च कर्मज्ञानस्य तदनुष्ठानस्य च वैराग्योत्पादनद्वारा चित्तकल्मवापनयद्वारा च ब्रह्मज्ञानं प्रति साधनत्वेन तयोः कार्यकारणत्वेन पूर्वोत्तरमीमांसयोरेकशास्त्रत्वम् । अत एव वृत्तिकाराः - ' एकमेवेदं शास्त्रं जैमिनीयेन षोडशलक्षणेन' इत्याहुः ।
'अत: ' ( इसलिए ) का प्रयोग हेतु के अर्थ में हुआ है । अर्थ होगा- जो व्यक्ति अंगों के साथ बेदों को पढ़ चुका है, वह नश्वर फल रखनेवाले कर्मों के सम्पादन से विरक्त हो जाता है; यही कारण है कि स्थिर ( अनश्वर ) मोक्ष की इच्छा रखनेवाले व्यक्ति को ब्रह्म को जानने की इच्छा होती है, क्योंकि यही उस ( मोक्षप्राप्ति) का उपाय है । यह स्वाभाविक