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सर्वदर्शनसंग्रहे
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'अवयवों के साथ होना' इसका अर्थ क्या है—(१) अवयवों के साथ संयोग होना, या ( २ ) अवयवों के साथ नित्यरूप में सम्बद्ध रहना, या (३) अवयवों से उत्पन्न होना, या ( ४ ) नित्यरूप से सम्बद्ध ( समवेत ) द्रव्य होना अथवा ( ५ ) अवयवों [ के विचार ] से युक्त बुद्धि का ही विषय होना ? [ पंचम विकल्प का अर्थ है कि जिस बुद्धि से सावयव पदार्थ का ज्ञान होता है उस बुद्धि में ही 'अवयवों से संयुक्त होने का प्रत्यय ( Concept ) छिपा हुआ हो।]
(१) पहला विकल्प [ कि अवयवों के साथ संयोग होता है ] ठीक नहीं क्योंकि आकाश आदि पदार्थों में व्यभिचार हो जायगा [ इसलिए अतिव्याप्ति हो जायगी ] आशय यह है कि आकाश के जो अवयव या भाग हैं उनका संयोग आकाश में है । इस प्रकार प्रथम विकल्म के अनुसार ही, अवयवों के साथ संयुक्त सावयवत्व यहाँ पर हेतु है जो कार्य अर्थात् आकाश की सिद्धि में उपयुक्त हो सकता है। यदि सावयव होने का अर्थ है 'अवयवों के साथ संयुक्त होना' तब तो आकाश भी अवयवों से संयुक्त है फिर आकाश को नैयायिक लोग कार्य क्यों नहीं मानते ? नैयायिक लोग इस युक्ति में
सभी सावयव ( अवयवसंयोगी ) पदार्थ कार्य हैं, चूंकि आकाश सावयव ( अवयव संयोगी ) है,
इसलिए आकाश कार्य है, साध्य ( 'कार्य' ) को पक्ष ('आकाश' ) भिन्न मानते हैं, आकाश को कार्य नहीं मानते। इसके चलते 'सावयव' हेतु व्यभिचारग्रस्त माना जायगा और वह व्यभिचार ( Wide application ) है कि यह हेतु साध्य के अभाव से युक्त ( साध्याभाववत् ) स्थानों में
भी अपनी वृत्ति रखता है ( साध्याभावववृत्तित्वरूपव्यभिचारग्रस्त: सावयवत्वहेतुः )। निष्कर्ष यह निकला कि 'अवयव संयोगी वाले सावयवत्व को हेतु के रूप में ग्रहण करने से आकाश को भी समेट लेना पड़ेगा जो कार्य नहीं होते हुए भी कार्य के रूप में सिद्ध हो जायगा । इसलिए सावयव का अर्थ 'अवयवों के साथ संयुक्त रहना' नहीं होना चाहिए । आकाश में अवयव नहीं हैं, ऐसी शंका नहीं करनी चाहिए क्योंकि अवयव नहीं रहने से वह व्यापक नहीं हो सकता । जिसके भाग हैं वही व्यापक होगा। ]
(२) दूसरा विकल्प [ कि अवयवों के साथ नित्य रूप से सम्बद्ध रहना ही सावयव होना है ] भी ठीक नहीं, क्योंकि इससे सामान्य आदि में व्यभिचार या अतिव्याप्ति हो जायगी। [ ठीक ऊपर जैसी दशा यहाँ भी है। सामान्य या जाति ( जैसे-द्रव्यत्व, घटत्व, गोत्व आदि ) अपने व्याप्य विषयों (जैसे-घट, पट, गो ) में तो है ही, उनके अवयवों में भी है। सामान्य का इनके साथ समवाय-सम्बन्ध ( Inherent relation ) है कि कभी न ..रम्भ देखा गया और न अन्त ही । नित्य, निरन्तर का दोनों में सम्बन्ध । है । तब तो यह निश्चित है कि सामान्य अवयवों के साथ समवेत है। अब वही अनुमान