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________________ आहेत-दर्शनम् १०७ ( १३ ) उपमान-प्रमाण से असिद्धि-'सर्वज्ञ के समान यदि किसी व्यक्ति को हम इस समय देखें तभी तो उपमान-प्रमाण के द्वारा उन्हें जान सकते हैं ? (१४) अर्थापत्ति-प्रमाण से असिद्धि-'बुद्ध ( या जिन ) का उपदेश, जो धर्मअधर्मादि का बोधक है, दूसरी तरह से सिद्ध नहीं हो सकता यदि उन्हें सर्वज्ञ नहीं मानते । (१५) 'इस प्रकार की अर्थापत्ति भी प्रमाण के रूप में यहाँ ठीक नहीं बैठती क्योंकि उपदेश की सत्यता ही अध्यक्ष ( Controlier ) के रूप में नहीं देखी जाती।'' विशेष-कुमारिल भट्ट यहाँ पर सिद्ध करना चाहते हैं कि अर्थापत्ति के द्वारा भी सर्वज्ञ की सिद्धि नहीं हो सकती। जैन कहते हैं कि यदि अर्हत् सर्वज्ञ नहीं होते तो उनके वचन सत्य और आप्त नहीं होते । किन्तु वचन चूंकि सत्य और आप्त हैं, इसलिए वे अर्हत् सर्वज्ञ हैं। यह तर्क बुद्ध के विषय में दिया गया है किन्तु जैन लोग उन्हीं की ओट में अपना मतलब साधते हैं। लेकिन जिस हेतु को लेकर यह अर्थापत्ति होती है ( अर्थात् 'वचन सत्य हैं' ), वही गलत है। अतएव अर्थापत्ति के द्वारा भी सर्वज्ञ की सत्ता सिद्ध नहीं होती। ___ अभाव प्रमाण न देने का कारण यह है कि यह प्रमाण अभावात्मक ( Negative) है, जिसकी आवश्यकता ही नहीं। इस प्रकार भाट्ट-मीमांसा के छहों प्रमाणों से सर्वज्ञ की की सिद्धि नहीं होती। ( ९. अहंत पर मीमांसकों को शङ्का का समाधान ) अत्र प्रतिविधीयते । यदभ्यधायि 'तत्सद्भावग्राहकस्य प्रमाणपञ्चकस्य तत्रानुपलम्भात्' इति तदयुक्तम् । तत्सद्भावावेदकस्यानुमानादेः सद्भावात् । तथा हि कश्चिदात्मा सकलपदाथसाक्षात्कारी, तद्ग्रहणस्वभावत्वे सति प्रक्षीणप्रतिबन्धप्रत्ययत्वात् । यद्यग्रहणस्वभावत्वे सति प्रक्षीणप्रतिबन्धप्रत्ययं, तत्तत्साक्षात्कारि; यथा-अपगततिमिरादिप्रतिबन्ध लोचनविज्ञानं रूपसाक्षात्कारि। अब इसका उत्तर दिया जाता है—आपने जो यह कहा कि 'उसकी सत्ता को सिद्ध करनेवाले पाँचों प्रमाणों में कोई वहाँ प्राप्त नहीं है' यह ठीक नहीं। कारण यह है कि उस ( सर्वज्ञ ) की सत्ता सिद्ध करनेवाले अनुमान आदि की सत्ता वास्तव में है। स्पष्टीकरण-कोई आत्मा ( = अहंत, सर्वज्ञ मुनि ) सभी पदार्थों का साक्षात्कार कर सकती है यदि, सभी पदार्थों को ग्रहण करने का इसका स्वभाव होने पर, इस प्रकार के १. तुलना करें बुद्धादयो ह्यवेदज्ञास्तेषां वेदादसंभवः । उपदेशः कृतोऽतस्तैार्मोहादेव केवलात् ।।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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