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________________ आहत-वर्शनम् ( ३. जनों द्वारा उपर्युक्त मत का खंडन ) तदपि काशकुशावलम्बनकल्पम् । विकल्पासहत्वात् । जलधरादौ दृष्टान्ते क्षणिकत्वमनेन प्रमाणेन प्रमितं, प्रमाणान्तरेण वा। नाबः। भवदभिमतस्य क्षणिकत्वस्य क्वचिदप्यदृष्टचरत्वेन दृष्टान्तासिद्धावस्यानुमानस्यानुत्थानात् । न द्वितीयः । तेनैव न्यायेन सर्वत्र क्षणिकत्वसिद्धौ सत्त्वानुमानवैफल्यापत्तेः। अर्थक्रियाकारित्वं सत्त्वमित्यङ्गीकारे मिथ्यासर्पदंशावेरप्यर्थक्रियाकारित्वेन सत्वापादनाच्च । अत एवोक्तम्-उत्पादव्ययप्रौव्ययुक्तं सदिति। - बौदों की यह युक्ति काश (एक उजले फूलवाली घास जो मीठी होती है तथा शरद् में फूलती है ) और कुश का सहारा लेना भर है, ( इसमें तथ्य नहीं।) [ डूबता हुआ व्यक्ति यदि तिनका पकड़ ले तो बचाव नहीं हो सकता, उसी प्रकार दोष-नदी में ये बौद्ध डूब रहे है। उपर्युक्त युक्ति एक तिनके के समान है, इससे रक्षा क्या होगी ? हाँ, थोड़ी देर के लिए मानसिक शान्ति मिल पाती है कि मैंने उत्तर दे दिया। अभिप्राय है कि क्षणिकवाद पल नहीं सकता । इसमें कारण है।] [ उपर्युक्त युक्ति में दो विकल्प हो सकते हैं और ] दोनों का खण्डन हो जाता है। वे दोनों हैं-जेलधर इत्यादि का दृष्टान्त जो ऊपर दिया गया है ( यत् सत् तत् क्षणिकं यथा जलधरः सन्तश्च भावा अमी) उसमें क्षणिकत्व की सिद्धि इसी प्रमाण ( = अनुमान) से होती है या किसी दूसरे प्रमाण की आवश्यकता पड़ती है ? ( दूसरा प्रमाण = प्रत्यक्ष, शब्द आदि)। पहला विकल्प ठीक नहीं, क्योंकि आपके मत के अनुसार जो क्षणिकत्व है वह कहीं भी दिखलाई नहीं पड़ता, इसलिए दृष्टान्त ही ठीक नहीं ( जलधर को सभी व्यक्ति स्थायी रूप से देखते हैं, न कि क्षण-क्षण में परिवर्तित ), तो उपर्युक्त अनुमान नहीं किया जा सकता है। [आशय यह है-यों तो सभी लोग संसार को क्षणभंगुर मानते हैं किन्तु बौद्धों का क्षण कुछ दूसरा ही है । सामान्य दृष्टि से क्षण का अर्थ है थोड़ी देर, इसलिए क्षण-भंगुर = थोड़ी देर तक ठहरनेवाला। न्यायशास्त्र में क्षण का अर्थ है तीन क्षण तक ठहरना क्योंकि पहले क्षण में उत्पत्ति, दूसरे में स्थिति और तीसरे में विनाश । लेकिन सभी वस्तुएं वहाँ भी क्षणिक नहीं हैं । बौद्धों का क्षण तो एक क्षण का ही है। लेकिन ऐसी कोई चीज नहीं है जो एक क्षण-भर ठहरे । क्षण = ऐसा कालांश जिससे सूक्ष्मतर और कोई काल न हो, सूक्ष्मतम कालांश । निमेष तक तो हम अनुभव कर सकते हैं किन्तु क्षण का नहीं। निमेष को ही लीजिए-इसमें चार क्षण हैं—पलक चलाना, इसके पूर्वस्थान का विभाजन, पूर्वसंयोगनाश, उत्तरसंयोग की उत्पत्ति । क्षण का अनुभव नहीं कर पाने से हो हम चारों को एक साथ समझ लेते हैं। क्षण के रूप में काल का विभाजन करना कठिन
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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