SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्ध दर्शनम् ८५ (Mind colours everything and as such cannot know the noumena or Reality. What we are capable to know is only Appearance as interpreted in terms of the mental colouring of the real nature of things-of the so-called things-in-themselves) प्रकार प्रत्यक्ष भी कभी-कभी अप्रमाण माना जाता है । ( ३१. निर्विकल्पक प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण है ) we तदुक्तम् २४. कल्पनापोढम भ्रान्तं प्रत्यक्षं निर्विकल्पकम् । विकल्पो वस्तुनिर्भासादसंवादादुपप्लवः ॥ इति । २५. ग्राह्यं वस्तु प्रमाणं हि ग्रहणं यदितोऽन्यथा । न तद्वस्तु न तन्मानं शब्दलिङ्गेन्द्रियादिजम् ॥ इति च । = जैसा कि कहा गया है - ' निर्विकल्पक प्रत्यक्ष वह है जो कल्पना से रहित है तथा भ्रान्त ( मिथ्या ज्ञान ) भी नहीं है ( भ्रान्त नहीं होने से यह सत्य ज्ञान है और प्रमाण है ) । विकल्प - प्रत्यक्ष ( सविकल्पक प्रत्यक्ष ) में वस्तुओं की प्रतीति ( निर्भास, Appearance ) होती है, एकमति से ज्ञान न होने के कारण यह भ्रम ( उपप्लव ) है ( सविकल्पक ज्ञान भिन्न-भिन्न पुरुषों का विभिन्न प्रकार से होता है, सभी लोग एक ही दृष्टि से वस्तुओं को नहीं जानते इसलिए सबों की एकमति नहीं । लेकिन प्रमाण वही है जो एकात्मक - ज्ञान हो ) । और भी - ' ग्राह्य ( निर्विकल्पक प्रत्यक्ष का विषय ) वस्तु ही [ सत्य है ] क्योंकि प्रमाण केवल ग्रहण ( निर्विकल्पक प्रत्यक्ष द्वारा ज्ञान ) ही है । इसके अतिरिक्त जो कुछ है वह वस्तु नहीं है, शब्द, लिंग और इन्द्रियादि से उत्पन्न होने के कारण वह प्रमाण भी नहीं ।' विशेष - ज्ञान की उत्पत्ति के साधन ये हैं--शब्द ( शब्द- प्रमाण ), लिंग ( अनुमान प्रमाण ), इन्द्रिय ( सविकल्पक प्रत्यक्ष मात्र ) । आदि = उपमानादि । ये सभी ज्ञान काल्पनिक हैं, वस्तुनिष्ठ नहीं । शब्द -- यदि कोई कहे कि कलकत्ते में कल खूब पानी बरसा, तो श्रोता अपने पहले देखे हुए नगर के समान कलकत्ते की कल्पना करता है, फिर बीती हुई रात की कल्पना करता है, फिर कभी देखी हुई वर्षा की कल्पना करता है - इस प्रकार क्रम से ज्ञान करता हुआ शब्दज्ञान से परिस्थिति को कल्पना का विषय बनाता है इसलिए यह प्रमाण नहीं | लिंग - जो अज्ञात वस्तु का ज्ञान करावे ( लीनमर्थ गमयति ) वही लिंग है जैसे - धूमादि । पहाड़ पर धूम देखकर रसोईघर आदि जगहों में पहले देखे गये अग्नि के सदृश अग्नि की कल्पना अनुमाता करता है । यहां भी पहले की तरह कल्पना है अतः लिंग से उत्पन्न ज्ञान ( अनुमान ) भी प्रमाण नहीं । इन्द्रिय -- इससे उत्पन्न प्रत्यक्ष ज्ञान 1
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy