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आलम्बनविभावः
आवेगः इनमें से वाच्यार्थ की व्यञ्जना का उदाहरण निश्शेषच्युतचन्दनम् आदि पद्य तथा व्यङ्ग्यार्थ की व्यञ्जना का उदाहरण पश्य निश्चल आदि पद्य है। (2/23) ___ आलम्बनविभाव:-विभाव का एक भेद। जिनका आश्रय लेकर रस की निष्पत्ति होती हो, उन्हें आलम्बन विभाव कहते हैं। नायकादि ही रस के आलम्बन होते हैं। आदि शब्द से नायिका और प्रतिनायक का ग्रहण होता है। (3/34)
आलस्यम्-एक व्यभिचारीभाव। श्रम अथवा गर्भ आदि से उत्पन्न जडता का नाम आलस्य है। इसमें अँभाई तथा एक स्थान पर बैठे रहना आदि होता है-आलस्यं श्रमगर्भाद्यैर्जाड्यं जृम्भासितादिकृत्। यथा- न तथा भूषयत्यङ्ग न तथा भाषते सखीम्। जृम्भते मुहुरासीना बाला गर्भभरालसा।। इस पद्य में नायिका के गर्भजन्य आलस्य का वर्णन है। (3/162)
आलस्यम्-शिल्पक का एक अङ्ग। (6/295)
आवापोद्वापः-आवाप का अर्थ है पदान्तर का ग्रहण तथा उद्वाप का अर्थ है विद्यमान पद का त्याग। बालक शब्दों का सर्वप्रथम ज्ञान वृद्धव्यवहार को देखकर आवाप और उद्वाप अर्थात् पदों के ग्रहण और त्याग से प्राप्त करता है। उत्तम वृद्ध के द्वारा मध्यम वृद्ध को उद्दिष्ट करके 'गामानय' ऐसा कहे जाने पर मध्यम वृद्ध के द्वारा सास्नादिमान् पदार्थ के आनयन को देखकर बालक इस पद समूह का अर्थ सास्नादिमान् पिण्डविशेष का आनयन समझ लेता है। उसके अनन्तर उत्तम वृद्ध के 'गां बधान', ऐसा कहने पर मध्यम वृद्ध के व्यवहार को देखकर वह 'गाम्' इतने भाग का अर्थ गो नामक पशु-विशेष तथा 'आनय' और 'बधान' पदों का पृथक्-पृथक् अर्थ आनयन
और बन्धन क्रिया समझता है। इसी प्रकार उसे अनेक पदों का सङ्केतज्ञान हो जाता है। बालक के द्वारा शब्दज्ञान की इस प्रक्रिया को ही आवापोद्वाप कहा जाता है। (2/7 की वृत्ति)
आवेगः-एक व्यभिचारीभाव। मन की सम्भ्रमात्मक स्थिति को आवेग कहते हैं-आवेगः सम्भ्रमः। यदि यह सम्भ्रम हर्ष से उत्पन्न हो तो उसमें शरीर सङ्कुचित हो जाता है, उत्पात से उत्पन्न आवेग में अङ्ग शिथिल हो जाते