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________________ विरोध: 175 विलासः विरोध: - प्रतिमुखसन्धि का एक अङ्ग । दुःख की प्राप्ति को विरोध कहते हैं- विरोधो व्यसनप्राप्तिः । यथा-च. कौ. में राजा की यह उक्ति - नूनमसमीक्ष्यकारिणा मयान्धेनेव स्फुरच्छिखा कलापो ज्वलनः पद्भ्यां समाक्रान्त:। (6/89) विरोध: - एक अर्थालङ्कार । जहाँ जाति का जाति, गुण, क्रिया और द्रव्य के साथ, गुण का गुण, क्रिया और द्रव्य के साथ, क्रिया का क्रिया और द्रव्य के साथ तथा द्रव्य का द्रव्य के साथ विरोध आभासित हो वहाँ विरोधालङ्कार होता है - जातिश्चतुर्भिर्जात्याद्यैर्गुणो गुणादिभिस्त्रिभिः । क्रिया क्रियाद्रव्याभ्यां यद्द्रव्यं द्रव्येण वा मिथः । विरुद्धमेव भासेत विरोधोऽसौ दशाकृतिः। इस प्रकार इसके कुल दश भेद निष्पन्न होते हैं। यथा- तव विरहे मलयमरुद् दवानलः, शशिरुचोऽपि सोष्माणः । हृदयमलिरुतमपि भिन्ते, नलिनीदलमपि निदाघरविरस्याः ।। इस उदाहरण में मलयपवन (जाति) और वन की अग्नि (जाति) का, किरण (जाति) और ऊष्मा (गुण) का, अलिरुत (जाति) और भेदन (क्रिया) का तथा नलिनदल (जाति) और निदाघरवि ( द्रव्य) का विरोध प्रतीत होता है जो विरहरूप हेतु की प्रतीति के अनन्तर शान्त हो जाता है। विभावना में कारण के अभाव में कार्य तथा विशेषोक्ति में कार्य के अभाव में कारण बाध्य प्रतीत होता है परन्तु यहाँ दोनों में ही बाध्यता की प्रतीति होती है । ( 10/89) विरोधनम् - विमर्शसन्धि का एक अङ्ग । कार्य में विघ्न का आ पड़ना विरोधन कहा जाता है - कार्यात्ययोपगमनं विरोधनमिति स्मृतम् । वे.सं. में युधिष्ठिर की यह उक्ति इसका उदाहरण है- तीर्णे भीष्ममहोदधौ कथमपि द्रोणानले निर्वृते, कर्णाशीविषभोगिनि प्रशमिते शल्ये च याते दिवम् । भीमेन प्रियसाहसेन रभसादल्पावशेषे जये सर्वे जीवितसंशयं वयममी वाचा समारोपिताः ।। (6/119) विलासः - नायक का सात्त्विक गुण । दृष्टि में धीरता, गति में वैचित्र्य तथा स्मितपूर्ण भाषण विलास नामक गुण है- धीरा दृष्टिर्गतिश्चित्रा विलासे सस्मितं वचः । यथा - दृष्टिस्तृणीकृतजगत्त्रयसत्त्वसारा, धीरोद्धता नमयतीव
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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