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________________ प्रगमनम् प्रच्छेदकः करने वाला) तथा मित्राणां सामर्थ्यकृत् (मित्रों की सामर्थ्य को करने वाला), इस प्रकार दोनों के साथ अन्वित हो जाता है। इन दोनों ही उदाहरणों में समान रूपों में प्रकृति भिन्न-भिन्न है, अतः ये प्रकृतिश्लेष के उदाहरण हैं। (10/14 की वृत्ति) प्रगमनम् - प्रतिमुख सन्धि का एक अङ्ग । उत्तरोत्तर उत्कृष्ट वाक्यविन्यास को प्रगमन कहते हैं-प्रगमनं वाक्यं स्यादुत्तरोत्तरम् । इसका उदाहरण वि.उ. में उर्वशी के "जयतु जयतु महाराजः " इस कथन पर राजा का उत्तर " मया नाम जितं यस्य त्वया जयमुदीर्यते" है। (6/88) प्रगल्भता - नायिका का सात्त्विक अलङ्कार । निर्भयता को प्रगल्भता कहते हैं - निःसाध्वसत्वं प्रागल्भ्यम् । यथा - समाश्लिष्टाः समाश्लेषैश्चुम्बिताश्चुम्बनैरपि । दष्टाश्च दंशनैः कान्तं दासीकुर्वन्ति योषितः ।। (3/111) 112 प्रगल्भा - स्वकीया नायिका का एक भेद । कामभाव से अत्यन्त उन्मत्त, प्रगाढ़ युवावस्था को प्राप्त, सब प्रकार के रतिकार्यों में निष्णात, अत्यल्प लज्जाभाव से युक्त, पूर्णत: विकसित भावों वाली तथा ( रतिप्रसङ्ग में) नायक का भी अतिक्रमण कर जाने वाली नायिका प्रगल्भा कहलाती है - स्मरान्धा गाढ़तारुण्या समस्तरतकोविदा । भावोन्नता दरव्रीडा प्रगल्भाक्रान्तनायका । यथा - धन्यासि या कथयसि प्रियसङ्गमेऽपि विश्रब्धचाटुकशतानि रतान्तरेषु । नीवीं प्रति प्रणिहिते तु करे प्रियेण सख्यः शपामि यदि किञ्चिदपि स्मरामि ।। इस पद्य में स्मरान्धा नायिका का वर्णन है। मान की स्थिति में प्रगल्भा नायिका के धीरा, अधीरा तथा धीराधीरा के रूप में तीन भेद होते हैं। ये तीन प्रकार की प्रगल्भा नायिकायें पति के प्रेम के आधार पर ज्येष्ठा और कनिष्ठा के रूप में दो-दो प्रकार की होती हैं। । इस प्रकार इसके छः भेद निष्पन्न होते हैं। (3/73) प्रच्छेदक:- एक लास्याङ्ग । अपने पति को अन्य नायिका में आसक्त जानकर प्रेमविच्छेद के सन्ताप से वीणा के साथ स्त्री का गान प्रच्छेदक कहा जाता है-अन्यासक्तं पतिं मत्वा प्रेमविच्छेदमन्युना । वीणापुरस्सरं गानं स्त्रियाः प्रच्छेदको मतः ।। (6/ 246 ) )
SR No.091019
Book TitleSahitya Darpan kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamankumar Sharma
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Literature
File Size9 MB
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