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प्राकृतव्याकरणसम्बन्धी जो ग्रन्थ आजतक प्रकाशित हो चुके हैं उनका संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक समझकर उल्लेख नीचे किया जा रहा है ।
ग्रन्थ
१ प्राकृतप्रकाश
२ प्राकृतलक्षण ३ सिद्धहेमचन्द्र
४ संक्षिप्तसार
५ प्राकृत व्याकरण ( शब्दानुशासन )
६ प्राकृतरूपावतार
७ भाषा चन्द्रिका
८ प्राकृतसर्वस्व
९ प्राकृतकल्पतरु
( पद्यमय )
कर्ता
वररुचि
चण्ड
हेमचन्द्र
वाराणसी दि० २७-८-५९
क्रमदीश्वर
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त्रिविक्रमदेव
सिंहराज
लक्ष्मीधर
समय
परम प्राचीन
प्राचीन
११७२ ई०
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व्याख्या मनोरमा-मञ्जरी-संजीवनी - सुवोधिनी ४ प्राचीन, चन्द्रिका
११ नवीन, हिन्दीटीका १ प्रदीप x
प्राकृतप्रक्रिया वृत्ति या दुण्डिका उदयसौभाग्यगणिकृत रसवती, प्राकृतदीपिका,
प्राकृत पादटीका-३
१२३६ - १३०० ई० स्वोपज्ञवृत्ति
१३०० - १४०० ई०
१५४१ - १५६५ ई०
मार्कण्डेय कवीन्द्र
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रामशर्म तर्कवागीश अर्वाचीन
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आदिकवि वाल्मीकि के सूत्रों की अपनी व्याख्या का समर्थन आर्याछन्द में वृत्ति का लेखक
इसके सिवाय भरत, कोहल, शाकल्य, लङ्केश्वर ( प्राकृत कामधेनुकर्ता ), शेषकृष्ण पण्डित एवं अप्पय दीक्षित के नाम ग्रन्थकर्ता के रूप में आदरणीय हैं ।
x
अन्त में पुनः प्रकृत पुस्तक में अनेक ग्रन्थों के निर्माता, कवि, महामहोपाध्याय पण्डित श्रीमथुराप्रसाद दीक्षित भगवन्तनगर- हरदोई के निवासी का स्मरण उचित है, क्योंकि प्राकृतप्रकाश पर आपकी 'चन्द्रिका' नामक पञ्चम संस्कृत व्याख्या एवं 'प्रदीप' नामक सरल हिन्दी टीका भी है जिसका ऊपर उल्लेख हो चुका है ।
जिसकी प्रेरणा से कार्य किया गया उस परमात्मा को प्रणाम । जिन लोगों ने साहाय्य दिया उन मित्र, सम्बन्धी आदि की मंगलकामना के साथ प्रस्तुत ग्रन्थमाला के अध्यक्ष गुप्त बन्धुओं को शुभाशीर्वाद देकर ज्ञानदाता पूज्यपाद श्री गुरुचरणों में नतमस्तक हो इस भूमिका - लेखन कार्य से विराम लेते हैं ।
भवदीय
जगन्नाथ शास्त्री होशिङ्ग