SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। वस्तुतः उत्सर्ग और अपवाद के कथन द्वारा मुनिधर्म की रक्षा और शुद्धि करना ही इस ग्रन्थ का मुख्य उद्देश्य है। ववहारो व्यवहारसूत्र को द्वादशांगी का नवनीत कहा गया है। श्रमण जीवन के सर्वांगीण अध्ययन एवं अनुशीलन की दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अन्य छेदसूत्रों की भाँति इस सूत्र में भी श्रमण जीवन की आचार संहिता का वर्णन हुआ है। इसके रचयिता भद्रबाहु माने गये हैं। बृहत्कल्प व व्यवहारसूत्र को एक दूसरे का पूरक माना गया है। इसके दसवें उद्देशक के तीसरे सूत्र में पाँच व्यवहारों के नाम आए हैं – पंचविहे ववहारे पण्णत्तो तंजहा आगमे सुए आणा धारणा जीए । इन्हीं पाँच व्यवहारों के आधार पर इस सूत्र का नामकरण किया गया है। इसमें दस उद्देशक हैं, जिनमें स्वाध्याय व अनध्याय काल की विवेचना, श्रमण-श्रमणियों के बीच आचार-व्यवहार सम्बन्धी तारतम्य, ऊनोदरी-तप, आचार्य व उपाध्याय के विहार के नियम, प्रतिकार के लिए आलोचना, प्रायश्चित्त, साध्वियों के निवास, अध्ययन, चर्या, वैयावृत्य आदि श्रमणाचार सम्बन्धी व्यवहारों तथा संघ व्यवस्था के नियमोपनियम आदि का विवेचन है। निसीहं छेदसूत्रों में निशीथसूत्र एक मानदण्ड के रूप में है। यह सूत्र अपवाद बहुल है। इसमें श्रमणाचार के अपवादिक नियमों एवं उनकी प्रायश्चित्त विधि की विशेष चर्चा की गई है। अनिवार्य कारणों से या बिना कारण ही संयम की मर्यादा को भंग करके यदि कोई स्वयं आलोचना करके प्रायश्चित्त ग्रहण करे तो किस दोष का कितना प्रायश्चित्त होता है, यह इस छेद का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है। अतः यह छेदसूत्र हर किसी को नहीं पढ़ाया जाता है। निशीथसूत्र में 20 उद्देशक हैं, जिनमें चार प्रकार के प्रायश्चित्तों का वर्णन है। 19 उद्देशकों में प्रायश्चित्त का विधान तथा 20वें उद्देशक में प्रायश्चित्त देने की प्रक्रिया का वर्णन है। निशीथ आचारांगसूत्र की पाँचवीं चूलिका ही है, किन्तु विस्तृत होने के कारण बाद में इसे निशीथ के नाम से अलग कर दिया गया। इसके अतिरिक्त इस सूत्र में पाँच
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy