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________________ डालते हुए यह स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है कि जिनके पिता अपने कषायों के कारण नरक गति को प्राप्त हुए, उन्हीं के पुत्र रत्नत्रय रूप धर्म की सम्यक् आराधना करने के कारण देवलोक में गये। कर्म सिद्धान्त की सुन्दर व्याख्या करता हुआ यह उपांग मनुष्य के उत्थान व पतन का कारण कर्म को ही स्वीकार करता है। पुप्फिया पुष्पिका उपांग में दस अध्ययन हैं। इन दस अध्ययनों में चन्द्र, सूर्य, महाशुक्र, बहुपुत्रिका, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शिव, बल और अनादृत देवों का वर्णन है, जो विमान में बैठकर भगवान् महावीर के दर्शन के लिए जाते हैं। गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् महावीर उनके पूर्वभवों का कथानक कहते हैं। इस उपांग में स्व-समय और पर-समय के ज्ञान की दृष्टि से कथाओं का संकलन है। कथाओं में कौतूहल तत्त्व की प्रधानता है। इसके तीसरे अध्ययन में सोमिल ब्राह्मण का कथानक वर्णित है। देव द्वारा उसे प्रतिबोध देना तथा सोमिल द्वारा बारह व्रतों को स्वीकार करने का प्रसंग अत्यन्त रोचक है। सोमिल ब्राह्मण के कथानक के सन्दर्भ में 40 प्रकार के तापसों का उल्लेख हुआ है, जो उस समय की साधना-प्रणालियों को जानने की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सभी आख्यानों में वर्तमान जीवन की अपेक्षा परलोक के जीवन पर अधिक प्रकाश डाला गया है। इस आगम के चौथे अध्ययन में बहुपुत्रिका की कथा के माध्यम से सांसारिक मोह और ममताओं का सबल चित्रण हुआ है। पुनर्जन्म और कर्म सिद्धान्त का समर्थन सर्वत्र मुखरित है। पुप्फचूला पुष्पचूला की गणना धर्मकथानुयोग के अन्तर्गत की गई है। इस उपांग में दस अध्ययन हैं, जिनमें भगवान् पार्श्वनाथ के शासन में दीक्षित होने वाली 10 श्रमणियों श्रीदेवी, हृीदेवी, धृतिदेवी, कीर्तिदेवी, बुद्धिदेवी, लक्ष्मीदेवी, इलादेवी, सुरादेवी, रसदेवी और गंधदेवी के जीवन की चर्चा कथानक शैली में की गई है। ये सभी देवियाँ पूर्वभव में भगवान् पार्श्व के उद्बोधन से प्रेरित होकर आर्या पुष्पचूलिका के समीप श्रमण दीक्षा (40
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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