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________________ ई. सन् की पाँचवी शताब्दी से पूर्व से ही भगवान् महावीर एवं भगवान् बुद्ध ने अपने उपदेशों को इसी भाषा में पिरोया था। यद्यपि बुद्ध द्वारा उपदिष्ट साहित्य की भाषा को बाद में पालि का दर्जा देकर प्राकृत-साहित्य से पृथक् कर दिया गया, किन्तु कई विद्वान् पालि को प्राचीन प्राकृत ही मानते हैं। भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट जैन आगम साहित्य प्राकृत भाषा की अमूल्य धरोहर है। वैराग्य, तप, संयम, त्याग एवं सद्भावना से ओत-प्रोत यह साहित्य आध्यात्मिक सहृदयों को स्वतः अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। इस आध्यात्मिक साहित्य की महत्ता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वीर निर्वाण के 2000 वर्षों बाद तक (16वीं शताब्दी तक) इस साहित्य पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी, टीकाएँ आदि लिखे जाते रहे हैं। प्राकृत में जहाँ एक ओर वैराग्य एवं संयम भावना प्रधान साहित्य की सृष्टि हुई वहीं दूसरी ओर कोमल भावनाओं से युक्त मधुर एवं ललित साहित्य का भी सृजन मिलता है। वीरता, साहस, शृंगार-विलास, प्रेम-सौन्दर्य आदि भावनाओं की अभिव्यंजना की दृष्टि से प्राकृत कवियों ने अनेक उच्च-स्तरीय ललित एवं मधुर रचनाओं का सृजन कर इस भाषा को सरस बनाया है। गाथासप्तशती, वसुदेवहिण्डी, सेतुबंध, वजालग्ग आदि प्राकृत साहित्य की ऐसी रचनाएँ हैं, जिनकी विश्व-साहित्य के इतिहास में कोई सानी नहीं है। इस प्रकार प्राकृत भाषा में केवल धर्मोपदेशों को उद्धृत करनेवाले धार्मिक साहित्य का प्रणयन ही नहीं हुआ, अपितु लौकिक आख्यानों, काव्यग्रंथों, नाटकों, अनेक व्याकरण, छंद, अलंकार एवं कोष ग्रंथ भी इस भाषा के साहित्य सृजन का परिणाम हैं । वर्तमान युग तक यह परम्परा अक्षुण्ण रही है। इस प्रकार जब प्राकृत भाषा में इस विशाल साहित्य का सृजन हुआ तो विदेशी विद्वानों का ध्यान भी इस भाषा के सृजनात्मक साहित्य की ओर आकृष्ट हुआ। उन्होंने इस साहित्य के अध्ययन एवं अनुशीलन का प्रयास किया। इनमें याकोबी, विण्टरनित्स, पिशल, शुब्रिग, मेक्समूलर आदि उल्लेखनीय हैं। भारतीय विद्वानों में प्राकृत साहित्य को सर्वप्रथम क्रमबद्ध करने वाले विद्वान् डॉ. जगदीश चन्द्र जैन हैं। उन्होंने प्राकृत साहित्य का इतिहास में इस विशाल साहित्य का (VI)
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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