________________
चुका था, तब वीर निर्वाण के 980 से 993 के बीच देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में श्रमणसंघ पुनः वल्लभी में एकत्रित हुआ। स्मृति में शेष सभी आगमों को संकलित कर पुस्तकारूढ़ करने का प्रयत्न किया गया । पुस्तकारूढ़ करने का यह प्रथम प्रयास था। इसमें मथुरा व वल्लभी वाचना का समन्वय कर उसमें एकरूपता लाने का प्रयास किया गया। जहाँ मतभेद था, वहाँ माथुरी वाचना को मूल में स्थान देकर वल्लभी वाचना के पाठों को पाठान्तर में स्थान दे दिया गया। यह आगमों की अन्तिम वाचना थी। इसके बाद आगमों की सर्वमान्य कोई वाचना नहीं हुई। आगम लेखन
जैन परम्परा का विराट साहित्य चौदह पूर्वो व बारह अंगों में संचित था, किन्तु यह साहित्य लिपिबद्ध नहीं था। वीर निर्वाण संवत् 827-840 में मथुरा तथा वल्लभी में जो सम्मेलन हुए, उनमें एकादश अंगों को व्यवस्थित किया गया। उस समय आर्यरक्षित ने अनुयोगद्वारसूत्र की रचना की। उसमें द्रव्यश्रुत के लिए पत्तय पोत्थयलिहिय शब्द का प्रयोग हुआ है। इससे पूर्व आगम लिखने का प्रमाण नहीं मिलता है। इससे यह पता चलता है कि श्रमण भगवान् महावीर के निर्वाण की 9वीं शताब्दी के अन्त में आगमों के लेखन की परम्परा चली, परन्तु आगमों को लिपिबद्ध करने का स्पष्ट संकेत देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के समय से मिलता है। इस प्रकार आगम लेखन युग का प्रारंभ हम ईसा की 5वीं शताब्दी मान सकते हैं। आगमों की भाषा
जैनागमों की मूल भाषा अर्धमागधी है। यह देववाणी मानी गई है। भगवतीसूत्र में गौतम द्वारा यह प्रश्न करने पर कि देव किस भाषा में बोलते हैं? भगवान् महावीर द्वारा उत्तर दिया गया कि देव अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं तथा सभी भाषाओं में अर्धमागधी भाषा श्रेष्ठ व विशिष्ट हैगोयमा! देवाणं अद्धमागहीए भासाए भासंति......( 5.4.24) समवायांग व औपपातिकसूत्र के अनुसार भी तीर्थंकर अर्धमागधी भाषा में उपदेश देते हैं। इसकी व्याख्या करते हुए आचार्य हरिभद्र कहते हैं कि चरित्र की