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________________ जैन परम्परा में आगम ग्रन्थ साक्षात् तीर्थकर के कथन के समान माने गये हैं, चाहे वे गणधरकृत हों या श्रुतकेवली स्थविरकृत हों। दोनों में ही पदार्थ के रहस्य पर प्रकाश डाला गया है। नियुक्तिकार भद्रबाहु कहते हैं कि "तप-नियम-ज्ञान रूपी वृक्ष के ऊपर आरूढ़ होकर अनंतज्ञानी केवली भगवान् भव्यात्माओं के विबोध के लिए ज्ञान-कुसुमों की वृष्टि करते हैं। गणधर अपने बुद्धि-पट में उन सकल कुसुमों को झेलकर प्रवचन-माला गूंथते हैं।'' अर्थात् तीर्थंकर केवल अर्थरूप में उपदेश देते हैं, गणधर उसे ग्रन्थबद्ध या सूत्रबद्ध करते हैं। वर्तमान द्वादशांगी के रचयिता - सुधर्मा जैन अनुश्रुति के अनुसार प्रत्येक तीर्थकर के काल में द्वादशांगी की रचना होती है। सभी तीर्थकर जन-कल्याण के लिए अर्थ रूप में अपनी देशना देते हैं तथा उनके शिष्य गणधर शासन के हितार्थ उस अर्थ रूप देशना को अपनी शैली में सूत्रबद्ध करके द्वादशांगी की रचना करते हैं। वह द्वादशांगी प्रत्येक तीर्थकर के काल में प्रचलित एवं मान्य होती है। वर्तमान अवसर्पिणीकाल के अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर द्वारा भी जो धर्म देशना दी गई थी, उसे उनके गौतम प्रभृति ग्यारह प्रबुद्ध गणधरों द्वारा पृथक-पृथक स्वतंत्र रूप से द्वादशांगी के रूप में सूत्रबद्ध किया गया। लेकिन अन्य 10 गणधर आर्य सुधर्मा के निर्वाण से पूर्व ही अपने गण उन्हें सौंपकर निर्वाण प्राप्त कर चुके थे। अतः आर्य सुधर्मा द्वारा संकलित द्वादशांगी ही प्रचलित रही। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि वर्तमान में जो एकादशांगी (दृष्टिवाद लुप्त हो चुका है) प्रचलित है, वह आर्य सुधर्मा द्वारा संकलित है। इस तथ्य की पुष्टि के लिए आचारांग, समवायांग, स्थानांग आदि सूत्रों में अनेक प्रमाण मिलते हैं। इन सूत्र ग्रन्थों में आर्य जम्बू समय-समय पर अपने गुरु सुधर्मा से अनेक प्रश्न पूछते हैं। उनका उत्तर देते समय सुधर्मा द्वारा सुयं मे आउसं! तेण भगवया एवमक्खायं......... अर्थात् हे आयुष्मान! (जम्बू) मेरे द्वारा सुना गया है कि उन भगवान् महावीर द्वारा इस प्रकार कहा गया है। इस प्रकार की शब्दावली द्वारा विवेच्य विषय का निरूपण किया गया है। <15
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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