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सौरभ एवं प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ की रचना कर डॉ. सोगाणी ने अपभ्रंश को सीखने-सीखाने के लिए नये-आयाम प्रस्तुत किये हैं। विभिन्न प्राकृतों की तरह विद्यार्थी स्वतः अभ्यास हल करते-करते अपभ्रंश भाषा में निपुणता प्राप्त कर लेता है। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए प्रौढ़ प्राकृत-अपभ्रंश रचना-सौरभ का प्रणयन कर प्राकृत अपभ्रंश-व्याकरण को पूर्णता प्रदान करने का प्रयत्न किया गया है। इस ग्रन्थ में अपभ्रंश व प्राकृत के क्रिया-सूत्रों एवं कृदन्तों का विश्लेषण कर उन्हें अत्याधुनिक तरीके से समझाया गया है।
प्राकृत व्याकरण नामक पुस्तक में व्याकरण को एक नई विधा से लिखा गया है, इसमें संधि, समास, कारक तद्धित, स्त्री प्रत्यय एवं अव्यय को सरल पद्धति से समझाया गया है।
इन व्याकरण-ग्रन्थों के साथ-साथ डॉ. सोगाणी ने आगमों तथा प्राकृत एवं अपभ्रंश के विभिन्न ग्रन्थों से पद्यांशों व गद्यांशों का संकलन कर उनका व्याकरणिक विश्लेषण सहित हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया है। यह प्राकृत-अपभ्रंश व्याकरणिक-जगत में नवीन प्रयोग है। इस तरह की पद्धति से किया गया अनुवाद पूर्व में कहीं उपलब्ध नहीं है। डॉ. सोगाणी द्वारा व्याकरणिक विश्लेषण सहित हिन्दी अनुवाद की प्रकाशित विभिन्न पुस्तकों की सूची निम्न हैं1. अपभ्रंश काव्य सौरभ 2. प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ (भाग-1, 2) 3.आचारांग-चयनिका 4. दशवैकालिक-चयनिका 5. समणसुत्तं-चयनिका 6. उत्तराध्ययन-चयनिका 7. अष्टपाहुड-चयनिका 8. समयसार-चयनिका 9. परमात्मप्रकाश व योगसार-चयनिका 10. वजालग्ग में जीवन-मूल्य 11. वाक्पतिराज की लोकानुभूति।
___ इन पुस्तकों में दिया गया व्याकरिणक विश्लेषण प्राकृत-अपभ्रंश व्याकरण को समझने का प्रयोगिक तरीका है। इनके अध्ययन से भावात्मक अनुवाद की अपेक्षा व्याकरणात्मक अनुवाद को आत्मसात किया जा सकेगा तथा प्राकृत ग्रन्थों का सही-सही अर्थ समझा जा सकेगा। वस्तुतः डॉ. सोगाणी की इन पुस्तकों ने न केवल प्राकृत भाषा के अध्ययन को एक नई सारगर्भित दिशा प्रदान की है, अपितु इस धारणा को प्रतिष्ठापित