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________________ महाराष्ट्री, शौरसेनी, अर्धमागधी के अतिरिक्त अन्य प्राकृत बोलियों के नियमों का ज्ञान प्राप्त करने की दृष्टि से मार्कण्डेय का प्राकृतसर्वस्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। मार्कण्डेय ने अपने ग्रन्थ में प्राचीन वैयाकरणों के सम्बन्ध में भी कई तथ्य प्रस्तुत किए हैं । इन प्रमुख व्याकरण ग्रन्थों के अतिरिक्त रामशर्मा तर्कवागीश (17वीं शताब्दी) का प्राकृतकल्पतरु, शुभचन्द्रसूरी का शब्दचिंतामणि, रघुनाथ (18वीं शताब्दी) का प्राकृतानंद, देवसुन्दर का प्राकृतयुक्ति आदि भी प्राकृत व्याकरण के अच्छे ग्रन्थ हैं, जिनमें प्राकृत भाषा के साहित्यिक स्वरूप का यर्थाथ विवेचन प्रस्तुत किया गया है। आधुनिक व्याकरण-ग्रन्थ उपर्युक्त परम्परागत प्राकृत व्याकरण ग्रन्थों के परिचय में एक बात प्रमुख रूप से सामने आती है कि इन सभी व्याकरण-ग्रन्थों में संस्कृत भाषा को मूल में रखकर प्राकृत भाषा को सीखने- सीखाने का प्रयत्न किया गया है, यही कारण है कि लोगों में यह मिथ्या धारणा प्रचलित हो गई कि संस्कृत में निपुणता प्राप्त किये बिना प्राकृत भाषा का स्वतंत्र रूप से अध्ययन नहीं किया जा सकता है। इस मिथ्या धारणा को समाप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि सरल व सुबोध शैली में लिखा प्राकृत का कोई व्याकरण-ग्रन्थ उपलब्ध हो, जो अभ्यास व विभिन्न प्रयोगों द्वारा हिन्दी माध्यम से स्वतंत्र रूप से प्राकृत भाषा का ज्ञान प्राप्त करा सके। इस सन्दर्भ में आधुनिक विद्वानों ने महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं। प्राकृत भाषाओं का व्याकरण 19वीं शताब्दी में जर्मन विद्वान डॉ. आर. पिशल द्वारा लिखा गया ग्रामेटिक्स डे प्राकृतस नामक जर्मन ग्रन्थ प्राकृत भाषाओं का व्याकरण नाम से हिन्दी भाषा में अनुवादित हुआ है। इसके हिन्दी अनुवादक डॉ. हेमचन्द्र जोशी हैं। डॉ. पिशल का यह ग्रन्थ प्राकृत भाषा के अध्ययन हेतु अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस ग्रन्थ में प्राकृत का कोई व्याकरणकार नहीं छूटा है । सभी व्याकरण-ग्रन्थों के नियम इसमें श्रृंखला - बद्ध रूप से दिये गये हैं । 138
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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