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________________ यथा - इमस्स बालअस्स दे वि संवादिणी आकिदी त्ति विम्हाविदम्हि । अपरिइदस्स वि दे अप्पडिलोमो संवुत्तो त्ति अ॥ अर्थात् - इस बालक की और आपकी आकृति समान है। ऐसा (देखकर) मैं विस्मित हूँ। अपरिचित आपके लिए (यह) अनुकूल हो गया है। कालिदास द्वारा प्रयुक्त प्राकृत भाषा बोलचाल की प्राकृतों से भिन्न व्याकरण के नियमों से रूढ़ है। प्राकृत के अनेक मुहावरों व लोकोक्तियों का भी इसमें प्रयोग हुआ है। मालविकाग्निमित्रम् की कथावस्तु तो प्राकृत सट्टक परम्परा का ही पूर्ण अनुकरण करती प्रतीत होती है। इसमें राजमहिषी की परिचारिका मालविका और राजा अग्निमित्र की प्रणय कथा वर्णित है। इस नाटक में अधिकांश स्त्री पात्र हैं और उन्होंने प्राकृत भाषा का ही प्रयोग किया है। इन पात्रों द्वारा प्रयुक्त प्राकृत के संवाद सरस व मधुर हैं। कालिदास का विक्रमोर्वशीयम् नाटक तो एक प्रकार का प्राकृत सट्टक ही है। इसमें राजा पुरुवर तथा अप्सरा उर्वशी की प्रेमकथा वर्णित है। मेनका, रम्भा, सहजन्या, चित्रलेखा, उर्वशी आदि अप्सराएँ, यवनी, चेटी, राजमहिषी, तापसी आदि स्त्री पात्र एवं विदूषक प्राकृत ही बोलते हैं। अपभ्रंश के भी कुछ सुंदर पद्य इसमें मिलते हैं। यथा हउँ पइँ पुच्छिमि आअक्खहि गअवरु ललिअपहारें णासिअतरुवरु। दूरविणिजिअ ससहरुकंती दिट्ठि पिआ पइँ सम्मुह जंती ॥ (4.22 ) अर्थात् – सुन्दर प्रहारों से वृक्षों का नाश करने वाले, हे श्रेष्ठ हाथी! मैं तुमसे पूछ रहा हूँ कि, कहो तुम्हारे द्वारा दूर से ही चन्द्रमा की शोभा को हरण करने वाली क्या मेरी प्रिया प्रिय के सम्मुख जाती हुई देखी गई है? शूद्रक का मृच्छकटिकम् महाकवि शूद्रक के मृच्छकटिकम् को प्राचीन संस्कृत नाटकों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शूद्रक के समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है। अनुमानतः इनका समय लगभग पाँचवीं शताब्दी माना गया है। महाकवि
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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