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________________ अनेक कथाओं का गुम्फन किया है। शांत रस प्रधान इस कथा - ग्रन्थ में मुख्य रूप से महासेन राजर्षि का कथानक चलता है । वे संसार त्याग कर मुनि दीक्षा ग्रहण करते हैं। इस कथा - ग्रन्थ के माध्यम से आराधना, उपासना आदि को सार्वजनीय बनाने का प्रयत्न किया गया है। दार्शनिक व धार्मिक सिद्धान्तों का इस ग्रन्थ में विशद रूप से विवेचन हुआ है 1 अक्खाणमणिकोसो उत्तराध्ययन की सुखबोधा टीका के रचयिता आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ने धर्म के विभिन्न अंगों को उपदिष्ट करने हेतु आख्यानमणिकोश में अनेक लघु कथाओं का संकलन किया है। प्राकृत कथाओं का यह कोश ग्रन्थ है। मूल गाथाएँ 52 हैं, जो आर्याछंद में हैं। आम्रदेवसूरि ने इस पर ई. सन् 1134 में टीका लिखी है। मूल व टीका दोनों प्राकृत में हैं । कहीं-कहीं संस्कृत व अपभ्रंश का भी प्रयोग है । टीका ग्रन्थ में 41 अधिकार हैं, जो 146 आख्यानों में विभक्त हैं । विषय विविधता की दृष्टि से इस कोश की कथाएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इन आख्यानों में धर्मतत्त्वों के साथ-साथ लोकतत्त्व भी विद्यमान हैं। इन कथाओं के माध्यम से जीवन व जगत से सम्बन्धित सभी तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है। धार्मिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक नियमों की अभिव्यंजना विभिन्न कथानकों के माध्यम से की गई है । यथा शील की महत्ता के लिए सीता, रोहिणी, सुभद्रा, दमयंती के आख्यान वर्णित हैं । सुलसा आख्यान द्वारा श्रद्धा का महत्त्व प्रतिपादित किया है। इसी प्रकार तप, जिनपूजा, विशुद्ध भावना, कर्मसिद्धान्त आदि के माहात्म्य का विवेचन भी विभिन्न आख्यानों द्वारा किया गया है। कर्म सिद्धान्त की दार्शनिक व्याख्या करने वाली यह गाथा दृष्टव्य है - जं जेण पावियव्वं सुहं व दुक्खं व कंम्पनिम्मवियं । तं सो तहेव पावइ कयस्स नासो जओ नत्थि ।। ( 29.151 ) अर्थात् – जिस व्यक्ति के द्वारा जिस प्रकार के कर्म निर्मित किये गये हैं, वह उसी प्रकार से सुख और दुःख प्राप्त करता है, क्योंकि किये कर्मों का नाश नहीं होता है । हु 106
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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