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________________ जिसमें (13वीं शती) ने सिरिचिंधकव्वं नामक महाकाव्य की रचना की, वररुचि एवं त्रिविक्रम के प्राकृत व्याकरण के उदाहरणों का प्रयोग किया है । मलावार के श्रीकण्ठकवि ( 18वीं शती) ने सोरिचरित की रचना की । इस काव्य में श्रीकृष्ण के चरित का वर्णन है । स्पष्ट है प्राकृत में महाकाव्य की एक सशक्त परम्परा है। चौथी शताब्दी से ही प्राकृत महाकाव्य लिखे जाते रहे हैं। यह परम्परा 18वीं शताब्दी तक चलती रही। खण्डकाव्य महाकाव्य के एक देश का अनुसरण करने वाला काव्य खंडकाव्य कहलाता है। महाकाव्य में जीवन के समग्र पक्षों का एक साथ प्रस्तुतीकरण किया जाता है, किन्तु खंडकाव्य में जीवन के किसी एक मार्मिक पक्ष की ही काव्यात्मक अभिव्यंजना की जाती है। किसी एक पक्ष की अभिव्यक्ति से सम्बन्धित होने के कारण खंडकाव्यों में कथावस्तु का विकास धीरे-धीरे होता है। प्राकृत कवियों द्वारा खंडकाव्य कम ही लिखे गये हैं । प्राकृत I के प्रमुख खंडकाव्यों का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। कंसवहो 4 कंसवध के रचयिता रामपाणिवाद मलावर प्रदेश के निवासी थे। इनका समय ई.सन् 1707 - 75 तक माना गया है। प्रस्तुत खंडकाव्य में सर्ग एवं 233 पद्य हैं। इस काव्य की कथावस्तु का आधार श्रीमद् भागवत है। अक्रूरजी गोकुल आकर श्रीकृष्ण व बलराम को कंस के छल के बारे में बताते हैं कि धनुष यज्ञ के बहाने कंस ने उन्हें मारने का षड्यन्त्र रचा है। श्रीकृष्ण निमंत्रण स्वीकार कर बलराम सहित अक्रूर के साथ मथुरा जाते हैं। वहाँ धनुषशाला में जाकर धनुष को तोड़ देते हैं। आगे कुवलयापीड हाथी व अम्बष्ट को पछाड़ने, चाणूर व मुष्टिक मल्ल को मल्लयुद्ध में हराने की घटना वर्णित हुई है । अन्त में क्रुद्ध कंस स्वयं तलवार लेकर उनके सामने उपस्थित होता है। श्रीकृष्ण तत्क्षण ही कंस का वध कर देते हैं । समस्त कथानक इसी घटना के इर्द-गिर्द घूमता है। इस संक्षिप्त कथानक को लेकर कवि ने इस खंडकाव्य की रचना की है। श्री कृष्ण द्वारा कंस का वध करने का प्रसंग इस काव्य की केन्द्रीय घटना है । अतः इसी घटना के 93
SR No.091017
Book TitlePrakrit Sahitya ki Roop Rekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTara Daga
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages173
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size6 MB
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