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________________ १. आचारांग सूत्र आचारांग का महत्त्व आचारांग में आचार का प्रतिपादन किया गया है। अतः उसे सब अंगों का सार माना गया है। नियुक्तिकार ने स्वयं जिज्ञासा प्रस्तुत की'अंगों का सार क्या है ?' समाधान करते हुए कहा-'अंगों का सार आचार है ?' आचारांग में मोक्ष का उपाय बताया गया है अतः उसे सम्पूर्ण प्रवचन का सार कहा है। आचारांग श्रमण-जीवन का आधार है, अत: प्राचीन काल में इस आगम का अध्ययन सर्वप्रथम किया जाता था। इसके अध्ययन किये बिना सूत्रकृत आदि आगम साहित्य का अध्ययन नहीं किया जा सकता था। आचारांग के अध्ययन के पश्चात् ही धर्मानुयोग, गणितानुयोग और द्रव्यानुयोग पढ़ने का विधान है। आचारांग के नौ ब्रह्मचर्य अध्ययनों का वाचन किए बिना ही जो अन्य आगमों का अध्ययन करता है उसके लिए चातुर्मासिक प्रायश्चित का विधान किया गया है। आचारांगके शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन से नवदीक्षित १ अंगाणं किं सारो? आयारो। -आचारांग नियुक्ति, गाथा १६ २ आचारांग नियुक्ति, गाथा : ३ अंगं जहा आयारो तं अवाएता सुयगडंग वाएंति -निशीयणि, भाग ४, पृ० २५२ ४ अहवा बंभचेरादि आयारं अवाएत्ता धम्माणुओगं इसिमासियादि वाएति, अहवा सूरपण्णत्तिमाइ गणिताणुओगं वाएति, अहवा दिठिवानं दवियाणुओगं बाएति, अहवा जदा चरणाणुओगो वातितो तदा धम्माणुओगं अवाएत्ता गणियाणुयोग वाएति, एवं उक्कमो चारणियाए सब्वो वि भासियब्यो। -निशीथचूणि, भाग ४, पृ. २५२ ५ जे भिकनु णव बंभचेराई अवाएत्ता उत्तम सुयं वाएइ, बाएत्तं वा सातिज्जति -निशीथ, १६१
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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