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________________ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा इतिहासज्ञों तथा शिशिर कुमार मित्र ने अपनी Vision of India नामक पुस्तक में स्पष्ट स्वीकार किया है कि 'प्राचीन ग्रन्थ गुप्त साम्राज्य में और विशेषकर चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में लिखे गये हैं। रामायण, महाभारत, स्मृति आदि ग्रन्थों की रचना इसी काल में हुई।' इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय साहित्य का लेखन-काल गुप्त साम्राज्य तक खिंच आता है। सचाई यह है कि ईसा की पाँचवीं शताब्दी भारतीय वाङ् मय के लिपिकरण का महत्त्वपूर्ण समय रहा है । ४४ उक्त अनुशीलन से यह भी स्पष्ट होता है कि जैन आगम साहित्य अपनी प्राचीनता, उपयोगिता और समृद्धता के कारण अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा है । अंग साहित्य में भगवान महावीर की वाणी अपने बहुत कुछ अंशों में ज्यों की त्यों अब भी प्राप्त होती है । इस वाणी को तोड़ा मरोड़ा नहीं गया । यह जैन परम्परा की विशेषता रही कि अंगों को लिपिबद्ध करने वाले श्रमणों ने मूल शब्दों में कुछ भी हेरा-फेरी नहीं की, जैसा कि अन्य परम्पराओं में हुआ है । अंग एवं आगम साहित्य पर टीकाओं, चूणियों आदि की रचना हुई किन्तु आगम का मूल रूप ज्यों का त्यों रहा। साथ ही afroft क्षमाश्रमण की यह उदारता रही कि जहाँ उन्हें पाठान्तर मिले वहीं दोनों विचारों को ही तटस्थतापूर्वक लिपिबद्ध किया । आगमों का विस्तृत स्वरूप अगले अध्यायों में प्रस्तुत है । हम सर्वप्रथम अंग साहित्य का परिचय देकर स्थानकवासी व तेरापंथी परम्परा मान्य अङ्गबाह्य आगम साहित्य का परिचय देंगे और उसके पश्चात् taarम्बर मूर्तिपूजक मान्य अन्य अंगबाह्य आगमों का परिचय देकर आगम के व्याख्या साहित्य पर चिन्तन करेंगे। उसके पश्चात् दिगम्बर परम्परा मान्य आगम साहित्य का परिचय देकर आगम साहित्य का बौद्ध व वैदिक परम्परा के ग्रन्थों के साथ संक्षेप में तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करेंगे जिससे प्रबुद्ध पाठकों को आगम साहित्य के महत्व का परिज्ञान हो सके ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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