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________________ पारिभाषिक शब्द कोश ६६१ कालुष्य-कषायों से उत्पन्न क्षोभ कालुष्य है। - कक्षा---इस लोक सम्बन्धी और परलोक सम्बन्धी विषयों की आकांक्षा, कांक्षा है । यह सम्यग्दर्शन का अतिचार है। किल्विष-जो देव अन्त्यवासियों के समान होते हैं, वे किल्विष है। किल्बिष नाम पाप का है । पाप से युक्त देव किल्विषिक कहलाते हैं। कुधर्म-मिथ्याष्टियों से प्ररूपित जिसमें हिंसादि पापों की मलिनता होती है, वह धर्म नहीं है, कुधर्म है। कुल-दीक्षा प्रदान करने वाले आचार्य की शिष्य-परम्परा । अथवा पिता की वंश-शुद्धि को कुल कहा है । कुलकर-कर्मभूमि के प्रारम्भ में जो कूलों की व्यवस्था करने में दक्ष होते हैं, वे कुलकर हैं। भगवान ऋषभ के पिता नाभिराय कुलकर थे। कूटलेख-बनावटी या जाली लेख लिखना या मोहर आदि का अंकन करना कूटलेख है। . .. कटसाक्षिक-रिश्वत लेकर या मात्सर्य आदि के वश होकर असत्य भाषण करना कि मैं इस विषय में साक्षी हूँ। कृत-युग्म---चार का भाग देने पर जिस संख्या में चार अवस्थित रहें, अर्थात् चार से जो अपहृत हो जाती है, शेष कुछ भी नहीं रहता, वह कृत-युग्म राशि है।. कृत-युग्म कल्योज-जिस राशि को चार से भाजित करने पर एक शेष रहे और अपहार के समय कृत-युग्म हों, वह कृत-युग्म कल्योज राशि है। जैसे १७:४४ शेष १। कृतयुग्मकृतयुग्म राशि-जिस राशि को चार भागहार से भाजित करने पर चार शेष रहें और जिसे अपहार के समय कृत-युग्म हों, वह कृतयुग्मकृतयुग्म राशि कहलाती है। जैसे १६:४४ ॥ कृतयुग्म योज-जिस राशि को चार भागहार से भाजित करने पर तीन शेष रहें और अपहार के समय कृतयुग्म हों, वह कृतयुग्म त्र्योज राशि कहलाती है। जैसे १६:४४, शेष ३ । कृतयुग्म द्वापरयुग्म-जिस राशि को चार भागहार से भाजित करने पर दो शेष रहें और अपहार के समय कृतयुग्म हों, वह कृतयुग्म द्वापरयुग्म राशि कहलाती है। कृष्णलेश्या-निर्दयी, क्रूर स्वभावी, मद्य-मांस एवं युद्ध आदि में आसक्त, जिसके परिणाम कौवे के समान व खंजन पक्षी के समान काले होते हैं। केवलज्ञान-जो ज्ञान केवल, मतिज्ञानादि से रहित, परिपूर्ण, असाधारण, अन्य की अपेक्षा से रहित, विशुद्ध, समस्त पदार्थों का प्रकाशक, लोक व अलोक का ज्ञाता है, वह केवलज्ञान है। केवलवर्शनतीनों कालों के विषयभूत, अनन्त पर्यायों से संयुक्त, निज़ के
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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