SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 706
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पारिभाषिक शब्द कोश परिशिष्ट १ (अ) अकरणीपशमना जैसे पर्वत पर प्रवाहित होने वाली सरिता के पाषाण में बिना किसी प्रकार के प्रयोग के स्वयमेव गोलाई आदि उत्पन्न हो जाती है वैसे संसारी जीवों को अधःप्रवृत्तकरण प्रभृति परिणामस्वरूप क्रिया विशेष के बिना ही केवल वेदना के अनुभव आदि से कर्मों का जो उपशमन-उदय परिणाम के बिना अवस्थान होता है वह अकरणीपशमना है । अकर्मभूमि- असि मषि आदि कर्मों से रहित भूमि अकर्मभूमि है। अकषाय- जिस जीव के सम्पूर्ण कषायों का अभाव हो चुका है, वह अकषाय अथवा अकषायी है । अकाम निर्जरा - अनिच्छापूर्वक दुःख के सहने से जो कर्म निर्जरा होती है वह अकाम निर्जरा है । अकाल मृत्यु - असमय में बद्ध आयुस्थिति पूर्ण होने के पूर्व ही जीवन का नाश होना । अक्रियावादी जो अवस्थान के अभाव का प्रसंग प्राप्त होने की संभावना के अवस्थान से रहित किसी भी अनवस्थित पदार्थ की क्रिया को स्वीकार नहीं करते वे अक्रियावादी हैं । अक्षीणमहानस्-लाभान्तराय कर्म के उत्कृष्ट क्षयोपशमयुक्त जिस ऋद्धि के प्रभाव से ऋद्धिधारी के भोजन करने के पश्चात् भोजनशाला में अवशेष भोजन चक्रवर्ती की समस्त सेना के द्वारा कर लिया जाय तो भी क्षीण नहीं होता, उतना ही बना रहता है, वह अक्षीणमहानस् ऋद्धि होती है । अगति गति नामकर्म का अभाव हो जाने से सिद्ध गति अगति कही जाती है । अगारी - अगार का अर्थ घर है। आरम्भ और परिग्रह रूप घर से जो सहित है वह गृहस्थ अथवा अगारी है । • अगीतार्थ --- जिसने छेदसूत्र का अध्ययन नहीं किया है, या अध्ययन करके भी "जिसे विस्मृत हो गया है, ऐसा श्रमण अगीतार्थ है । . अगुरुलघु — गुरुता और लघुता का अभाव । अगुरुलघु गुण - जीवादिक द्रव्यों की स्वरूप प्रतिष्ठा का कारण जो अगुरु-लघु
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy